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प्रकृति और संस्कृति के महत्व को समझे बिना भारत सुखी नहीं हो सकता – स्वामी राम मोहन दास

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दुर्ग। प्रकृति संस्कृति परिषद के तत्वावधान में गोंडवाना भवन सिविल लाइंस दुर्ग में प्रकृति संस्कृति सम्मेलन का एकदिवसीय आयोजन किया गया। आयोजन में अयोध्या से पधारे प्रकृति संस्कृति परिषद के संरक्षक स्वामी राम मोहनदास मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए। भाटापारा के पूर्व विधायक नरेंद्र कुमार शर्मा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और शशि भूषण मोहंती अतिथि वक्ता के रूप में मंच पर उपस्थित रहे। कार्यक्रम के आरंभ में नारायण स्वरूपा देवी भगवती की पूजा अर्चना के साथ किया गया। मुख्य अतिथि और समस्त अन्य अतिथियों का स्वागत ओमकार ताम्रकार, दीपक चनपुरिया, संतोष विश्वकर्मा, प्रभु नाथ मिश्रा, डॉक्टर चंद्राकर, डॉक्टर एस के अग्रवाल, हिंदू युवा मंच के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे कार्यक्रम के सूत्रधार अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता सतीश कुमार त्रिपाठी ने मुख्य अतिथि स्वामी राम मोहनदास जी का परिचय दिया। श्री नरेंद्र शर्मा एवं शशि भूषण मोहंती जी का भी संक्षिप्त परिचय दिया गया। प्रकृति संस्कृति परिषद के गठन और उसके उद्देश्यों को समझ कर बताते हुए यह जानकारी दी कि फिलहाल भारत के प्रत्येक जिले में कम से कम ऐसा एक कार्यक्रम किया जाना निश्चित किया गया है फिर भविष्य में विकासखंड स्तर पर इस कार्यक्रम को किया जाएगा। कार्यक्रम के आरंभ में श्री नरेंद्र शर्मा ने प्रकृति संस्कृति परिषद के गठन और उसके उद्देश्यों को बताते हुए ऋषि और कृषि संस्कृति आधारित भारत का चित्रण किया। शशि भूषण मोहंती जी ने अपने वक्तव्य में भारतीय आदर्श और नैतिक मूल्यों को महत्वपूर्ण बताते हुए अपना उद्बोधन प्रस्तुत किया। उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए प्रभुनाथ मिश्रा ने कहा कि लोगों को बोलने वाले नहीं बल्कि करने वाले लोगों की आवश्यकता है। धीरे-धीरे ऐसा माहौल बन गया है कि अब लोग भारतीय संस्कृति को वैज्ञानिक मानकर स्वीकार कर रहे हैं। इसलिए युवाओं के बीच में ऐसे कार्यक्रम किए जाने की बड़ी आवश्यकता है।

मुख्य अतिथि स्वामी राम मोहनदास ने भारतीय दर्शन सिद्धांत वेद और शास्त्रों के आधार पर वैज्ञानिक तरीके से सुसंगत तथ्यों और प्रमाणों के साथ ब्रह्मांड की रचना का वर्णन किया। प्रकृति की उत्पत्ति और प्रकृति के साथ ईश्वर तत्व के सहयोग से बने इस संपूर्ण सृष्टि और जीव जगत जगदीश के संबंध को विस्तार से चित्रित किया। उन्होंने बताया कि चूंकि हम धर्म को कथा कहानियों के रूप में समझने का प्रयास करते हैं और दुर्भाग्य से राजनीतिक स्वरूप से हम धर्म को समझने की कोशिश करते हैं इसलिए हम गिलानी से भर जाते हैं। भारत पर लोगों ने आक्रमण किया लेकिन भारत ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया। क्योंकि भारत में रहने वाला व्यक्ति उस सत्य को समझता था जो की दुनिया के लोग नहीं समझ पाए थे। जो भूखा ना हो वह दूसरे की रोटी क्यों छीनेगा? जो धन-धान्य से परिपूर्ण हो, संतुष्ट हो वह दूसरों के धनी होने से क्यों असंतोष करेगा? इसलिए भारत ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया। भारत को गरीब बताने का और पिछड़ा बताने का जो षड्यंत्र था वह भारत की संस्कृति को और परंपराओं को नष्ट करने के उद्देश्य से था। स्वामी जी ने उपस्थित लोगों से भारतीय संस्कृति और दर्शन के प्रचार प्रसार हेतु प्रकृति संस्कृति परिषद से जुड़कर काम बढ़ाने की अपील की।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोगों उपस्थित हुए जिनमें मुख्य रूप से अधिवक्ता एवं चिकित्सा समुदाय के लोग उपस्थित हुए। विभिन्न अधिवक्ताओं एवं चिकित्सकों के साथ श्रीमती विभा मिश्रा, समीर त्रिपाठी महेंद्र कुमार दिल्ली बार बलदेव सिंह साहू, डॉ के एल शर्मा, एस आर, आनंद कुमार राय, डॉटर एस के साहू, रामचरण साहू, डॉक्टर एस के अग्रवाल, संध्या ताम्रकार, सावन श्रीवास्तव, विकास चंद्र तांडी, अजय वर्मा, प्रियांशी विश्वकर्मा, दिवाकर सिंह, आकाश त्रिपाठी, बेग राम गंगे, सतीश शर्मा, रमेश सिंह, श्रीमती कुमुद दिवेदी, हेम लाल यादव, रामू यादव, छम्मन देवगन, लक्ष्मीकांत विश्वकर्मा, जी एल हिरवानी सहित सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद थे।

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