सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और केंद्र सरकार की नौकरियों में भर्ती के लिए आर्थिक रूप से कमजोर (ईडब्ल्यूएस) वर्ग को 10 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई आज तीसरे दिन सुनवाई जारी है. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा था कि सरकारी नीतियों का लाभ लक्षित समूह तक पहुंचाने के लिए आर्थिक उपाय किये जाने को प्रतिबंधित नहीं किया गया है.
वहीं, सुप्रीम कोर्ट में वकीलों द्वारा ईडब्ल्यूएस को मिल रहे 10 प्रतिशत वाले आरक्षण का विरोध करते हुए कहा गया कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है और संविधान के साथ भी खिलवाड़ है. एडवोकेट पी विल्सन ने अपनी दलीलें रखते हुए साफ कहा है कि इस प्रकार का आरक्षण संविधान की पहचान को भी बर्बाद करने का काम करता है.
कोर्ट के सामने उन्होंने कहा कि 103वें संशोधन अधिनियम स्पष्ट रूप से संविधान के सिद्धांतों को नजरअंदाज करता है. इसकी पहचान को खत्म करने का प्रयास करता है. ऐसा होने से समानता वाले अधिकार को खतरा हो जाता है. ऐसे मामलों में हमें किसी ऑर्डर के आने का इंतजार नहीं करना चाहिए कि तब जाकर ही कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाए. वहीं, वरिष्ठ वकील रवि वर्मा कुमार ने भी अपनी दलीलें रखते हुए कहा था कि एक पक्ष को 10 प्रतिशत आरक्षण देकर दूसरों के साथ अन्याय किया जा रहा है.
दूसरे दिन की सुनवाई में क्या हुआ था
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा था कि सरकारी नीतियों का लाभ लक्षित समूह तक पहुंचाने के लिए आर्थिक उपाय किये जाने को प्रतिबंधित नहीं किया गया है. हालांकि, कोर्ट ने यह मौखिक टिप्पणी की थी. कई वकीलों ने चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि किसी परिवार की वित्तीय स्थिति के एकमात्र मानदंड के आधार पर ईडब्ल्यूएस कोटा तय करना असंवैधानिक है, क्योंकि संविधान के तहत इस तरह के आरक्षण को गरीबी उन्मूलन योजना के हिस्से के तौर पर मंजूर नहीं किया जाता है.
कौन-कौन जज हैं इस पीठ में शामिल
ईडब्ल्यूएस कोटे को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में न्यायमूर्ति ललित के अलावा न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं