चीन से आने वाले निवेश पर लगाई गई रोक को भारत जल्द हटाने का कोई इरादा नहीं रखता. यह बात सरकार के अंदर अहम पद पर बैठे ऐसे शख्स ने कही है, जिस पर यकीन करना ही होगा. वह कोई और नहीं, बल्कि मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन हैं. उन्होंने मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में यह बात कही. उन्होंने बताया कि चीन के साथ आर्थिक संबंधों में कोई बदलाव लाने से पहले दोनों देशों को एक-दूसरे की निर्भरता और लाभ को समझना होगा. नागेश्वरन ने कहा, “यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें दोनों पक्ष पत्थरों को छूकर और पकड़कर नदी पार कर रहे हैं.”
2020 में भारत और चीन के बीच हुए सीमा संघर्ष के बाद से ही भारत ने चीनी निवेश पर सख्त नियंत्रण लगा दिया था. यह संघर्ष हिमालय की सीमा पर हुआ था, जिसमें कुछ सैनिकों के हताहत होने की खबरें भी आई थीं. इस घटना ने दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा दिया और भारत ने चीनी कंपनियों के निवेश पर सरकारी अनुमति अनिवार्य कर दी. इससे पहले, चीनी कंपनियां भारतीय स्टार्टअप्स, टेक्नोलॉजी कंपनियों और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में भारी निवेश कर रही थीं.
हालांकि, निवेश पर रोक जारी है, लेकिन भारत ने चीन के साथ व्यापार घाटे को लेकर चर्चा शुरू की है. नागेश्वरन के अनुसार, भारत उन तीन देशों में शामिल है, जिनका चीन के साथ सबसे बड़ा व्यापार घाटा है. यह घाटा लगभग 93 से 95 अरब डॉलर के बीच है. भारत लंबे समय से इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में चीन पर अपनी निर्भरता को लेकर चिंतित रहा है. सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की कोशिश की है, ताकि चीनी सामानों पर निर्भरता कम की जा सके.
हाल के वर्षों में भारत ने चीन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी नीतियों को बढ़ावा दिया है. इसके अलावा, भारत सरकार ने कई चीनी ऐप्स और कंपनियों पर प्रतिबंध भी लगाए हैं. व्यापारिक मतभेदों के बावजूद, दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग जारी है, और भारत अपनी विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाकर व्यापार संतुलन सुधारने की दिशा में काम कर रहा है.