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महिला आरक्षण बिल को दसकों बाद मोदी कैबिनेट में मिली मंजूरी

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नई दिल्ली। देश के करोड़ो महिलाओं की वर्षों पुरानी मांग महिला आरक्षण बिल को कैबिनेट ने मंजूरी मिल गई है। कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने इस बिल के पास होने का स्वागत करते हुए कहा कि इसे विपक्ष की सहमति लेकर किया जाता तो सभी को खुशी होती।
ज्ञात हो कि महिला आरक्षण विधेयक को 12 सितम्बर 1996 को एचडी देवेगौड़ा के प्रधानमंत्री के कार्यकाल में पेश किया गया था।तब से यह महिला आरक्षण बिल लोकसभा में लटकी पड़ी थी।
  संसद के विशेष सत्र से पहले रविवार (17 सितंबर) को हुई सर्वदलीय बैठक में विपक्ष के ज्यादातर नेताओं ने महिला आरक्षण बिल लाने की वकालत की थी। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, मोदी सरकार की ओर से आगामी बुधवार (20 सितंबर) को महिला आरक्षण बिल पेश कर सकती है। 
1996 से संसद में लंबित है महिला आरक्षण बिल
महिला आरक्षण विधेयक एचडी देवगौड़ा की सरकार के समय 12 सितंबर 1996 को संसद में पेश किया गया था। तब से लेकर अब तक ये बिल 27 वर्षों से ज्यादा समय से लंबित है। इस विधेयक का मुख्य लक्ष्य महिलाओं के लिए लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में 15 साल के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करना है।
वाजपेयी से लेकर यूपीए सरकार में हुई लागू करने की कोशिशें
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में इस विधेयक को आगे बढ़ाया, लेकिन ये फिर भी पारित नहीं हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में 33 फीसदी आरक्षण का उल्लेख किया था।
यूपीए-1 की सरकार के दौरान 6 मई, 2008 को इस विधेयक को राज्यसभा में दोबारा पेश किया गया। महिला आरक्षण विधेयक 9 मई, 2008 को स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया। स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट 17 दिसंबर, 2009 को प्रस्तुत की गई। केंद्रीय कैबिनेट ने फरवरी 2010 में इस विधेयक को मंजूरी दे दी। इसके बाद 9 मार्च, 2010 को राज्यसभा से पारित हो गया, लेकिन लोकसभा में लंबित था। आरजेडी और समाजवादी पार्टी ने जाति के हिसाब से महिला आरक्षण की मांग करते हुए इसका विरोध किया।
पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी
संविधान के अनुच्छेद 243D के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया. अनुच्छेद 243D ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की. चुनाव से भरी जाने वाली सीटों की कुल संख्या और पंचायतों के अध्यक्षों के पदों की संख्या में महिलाओं के लिए कम से कम एक तिहाई आरक्षण है.
21 राज्यों ने अपने-अपने राज्य में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया है. ये राज्य आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल हैं.
चुनावों में क्या है महिलाओं के वोटों का महत्व? 
देश की आधी आबादी के वोटों की हर चुनाव में अहम भूमिका होती है. माना जाता है कि चुनाव में महिलाओं के वोट जिसके साथ होते हैं, वो ही जीतता है. उदाहरण के तौर पर कुछ आंकड़े देखे जा सकते हैं.
लोकसभा चुनाव 2019
सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनाव में 36 फीसदी महिलाओं ने बीजेपी को वोट दिया, जबकि 20 फीसदी महिलाओं ने कांग्रेस को वोट दिया. यूपी में 46 फीसदी महिलाओं ने बीजेपी को वोट दिया. नतीजा ये रहा कि बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ जीती.
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव
सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे के अनुसार ही बंगाल विधानसभा चुनाव में 2016 में 48 फीसदी महिलाओं ने टीएमसी को वोट दिया, जबकि 2021 में 50 फीसदी महिलाओं ने टीएमसी को वोट दिया. नतीजा ये रहा कि दोनों ही बार टीएमसी जीती।
करीब 40 देशों में महिलाओं के लिए आरक्षण
राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण की बात करें तो अन्य देशों में कई में भी यह लागू है. स्वीडन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस (आईडीईए) के अनुसार, लगभग 40 देशों में या तो संवैधानिक संशोधन के माध्यम से या चुनावी कानूनों में बदलाव करके संसद में महिलाओं के लिए कोटा है।
जिन देशों में महिलाओं के लिए कोटा अनिवार्य है, उनके अलावा 50 से अधिक देशों में प्रमुख राजनीतिक दलों ने स्वेच्छा से अपने स्वयं के कानून में कोटा प्रावधान निर्धारित किए हैं। पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में महिलाओं के लिए 60 सीटें आरक्षित हैं। बांग्लादेश की संसद में महिलाओं के लिए 50 सीटें आरक्षित हैं। नेपाल की संसद में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित हैं।
तालिबान के शासन से पहले अफगानिस्तान की संसद में महिलाओं के लिए 27 फीसदी सीटें आरक्षित थीं। यूएई की फेडरल नेशनल काउंसिल (एफएनसी) में महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित हैं। इंडोनेशिया में उम्मीदवारों में कम से कम 30 फीसदी महिलाओं का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। कई अफ्रीकी, यूरोपीय, दक्षिण अमेरिकी देशों में भी राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण है।
राजनीति में महिलाएं (निचला सदन) – जनवरी 2023 तक
रवांडा – 61.3 %
क्यूबा – 53.4 %
निकारागुआ – 51.7 %
मेक्सिको – 50 %
न्यूजीलैंड – 50%
संयुक्त अरब अमीरात – 50%
दक्षिण अफ़्रीका – 46.3 %
ऑस्ट्रेलिया – 38.4 %
फ्रांस – 37.8 %
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने 55 महिला उम्मीदवारों को टिकट दी थी, जिनमें से 41 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी। बीजेपी की महिला उम्मीदवारों की जीत का आंकड़ा 75 फीसदी रहा। वहीं, कांग्रेस ने 54 महिला उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा, जिनमें से केवल 6 ही चुनाव जीत सकी। कांग्रेस की महिला उम्मीदवारों की जीत का आंकड़ा 11 फीसदी रहा।
बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 24 महिला प्रत्याशी बनाए, लेकिन इनमें से केवल 1 को ही जीत हासिल हो सकी। इस तरह बीएसपी की महिला उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत महज 4 फीसदी रहा‌। महिला उम्मीदवारों को जिताने के मामले में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने अन्य दलों से बाजी मारी। टीएमसी ने 23 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिनमें से 39 फीसदी यानी 9 ने जीत हासिल की थी।

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