सावन के महीने में कवर्धा जिले के भोरमदेव मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। यहां के प्राचीन पंचमुखी बूढ़ा महादेव मंदिर और ऐतिहासिक भोरमदेव मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है। रोजाना सुबह से ही लोग मंदिर में दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।
श्रद्धालुओं और कांवरिए के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के अलावा जगह-जगह पर शीतल पेयजल और नाश्ता सहित भोरमदेव में विश्राम करने की व्ययवस्था भी रखी गई है। 11वीं शताब्दी में बना यह प्राचीन मंदिर आज भी मजबूती के साथ खड़ा है। इसकी बनावट दूसरे मंदिरों से अलग है। इसकी कलाकृति और प्राकृतिक सुंदरता लोगों को आकर्षित कर लेती है।
यह मंदिर 7 से 11वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था। यहां मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ भी कहा जाता है। इस मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुंदर उदाहरण है। मंदिर में 3 ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक 5 फुट ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है।
यहां तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंभे हैं और किनारे की ओर 12 खंभे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंभे बहुत ही सुंदर और कलात्मक हैं।