सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च के अपने निर्णय पर स्थिति स्पष्ट करते हुए शुक्रवार को कहा कि उसने बैंकों को कर्जदार के खाते को ‘धोखाधड़ी’ घोषित करने के पहले व्यक्तिगत तौर पर उसका पक्ष सुनने का निर्देश नहीं दिया था. कोर्ट ने यह स्पष्टीकरण भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की तरफ से 27 मार्च के आदेश में मौजूद दो बिंदुओं पर दिया है. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की एक पीठ ने कहा, ‘हमने कभी नहीं कहा कि कर्जदारों को व्यक्तिगत रूप से पक्ष रखने का मौका दिया जाए. हमने कहा था कि उन्हें समुचित नोटिस देकर अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाए.’
अपने पिछले आदेश को पिछली तारीख से लागू किए जाने के मुद्दे पर पीठ ने कहा कि इस बिंदु पर एसबीआई को निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी होगी. मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने गत 27 मार्च को दिए अपने एक फैसले में कहा था कि किसी खाते को धोखाधड़ी बताने पर न सिर्फ उसकी जानकारी जांच एजेंसियों को देनी होगी बल्कि कर्जदार को दंडात्मक एवं दीवानी मामलों का भी सामना करना होगा.
SBI की याचिका पर दिया फैसला
27 मार्च को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा था कि खातों को फ्रॉड घोषित करने से कर्जदारों के जीवन पर विपरीत असर भी होते हैं. उनके खातों को जालसाजी संबंधी दिशा-निर्देश के तहत धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पहले बैंक को उन्हें सुनवाई का अवसर देना चाहिए. यह फैसला भारतीय स्टेट बैंक की एक याचिका पर आया था.
आरबीआई के 2016 के मास्टर सर्कुलर को ‘वाणिज्यिक बैंकों और चुनिंदा एफआईएस की ओर से धोखाधड़ी वर्गीकरण और रिपोर्टिंग’ पर विभिन्न हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी. इसने बैंकों को बड़े कर्ज डिफॉल्टरों से सतर्क रहने को कहा था. आरबीआई ने कहा था कि बैंक ऐसे खातों को संदिग्ध पाए जाने पर फ्रॉड घोषित कर दें.