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झूलता मोरबी और बहता तलेगांव! सेल्फी, भीड़ और मौत, दो पुल, मगर लापरवाही की एक जैसी कहानियां

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रविवार को पुणे के तलेगांव में एक पुराना पुल टूट गया और करीब 30 सैलानी झरने की तेज धारा में बह गए. इनमें से 5 लोगों की मौत होने की खबर है. इस हादसे ने एक बार फिर 2022 के मोरबी पुल हादसे की खौफनाक यादें ताज़ा कर दी हैं, जब गुजरात में एक झूलता पुल टूटने से 135 से अधिक लोगों की जान चली गई थी. तलेगांव की घटना भले ही कम जानलेवा रही हो, लेकिन इसके पीछे की कहानी वही है- जर्जर संरचना, प्रशासनिक लापरवाही और समय रहते चेतावनी न देना.

रविवार को हुए हादसे में 30 से अधिक लोग बह गए और कई अब भी लापता हैं. सैकड़ों की भीड़, सेल्फी, मस्ती और फिर एक झटका- पुल टूटता है और लोग पानी में समा जाते हैं. मोरबी में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. दिवाली की छुट्टी थी, पुल पर भीड़ थी, और अचानक पुल की केबल टूट गई. दोनों मामलों में एक बात साफ है. इन पुलों की मरम्मत या जांच की जिम्मेदारी किसकी थी, और क्यों उसे गंभीरता से नहीं लिया गया?
मोरबी के मामले में जहां जांच के बाद कुछ निजी फर्मों पर उंगली उठी, वहीं तलेगांव में भी यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पुल की हालत को लेकर कोई चेतावनी पहले से थी? स्थानीय लोग बताते हैं कि इस पुल की हालत पहले से खराब थी, लेकिन इसे बंद नहीं किया गया.

विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे हादसे तब तक होते रहेंगे जब तक प्रशासन सिर्फ रिपोर्ट लिखने और चेतावनी बोर्ड लगाने तक सीमित रहेगा. जमीनी स्तर पर निगरानी, मरम्मत और समय पर कार्रवाई न होने की कीमत आम लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है. मोरबी के बाद पूरे देश में पुलों की जांच की बात हुई थी, लेकिन क्या वह सिर्फ एक ‘जागरूकता अभियान’ बनकर रह गया? तलेगांव की घटना इस बात की गंभीर चेतावनी है कि यदि मोरबी से सबक नहीं लिया गया तो अगला हादसा कहीं और इंतजार कर रहा है.