छत्तीसगढ़ के कई इलाके इन दिनों पानी की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं. इसी की रिपोर्टिंग के दौरान जब टीम राजधानी रायपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर दुर्ग जिले के अंजोरा ढाबा गांव लौट रही थी तो हमारी नजर बंजर जमीन पर लगे पौधों और वहां खड़ी कुछ महिलाओं पर गई. करीब 35 से 40 डिग्री तापमान में ये महिलाएं बंजर जमीन से करीब 300 से 400 मीटर दूर एक तालाब से डब्बों में पानी भरकर लातीं हैं और पेड़ों की जड़ों में डालती नजर आ रहीं थीं. पूछने पर पता चला कि गांव की महिलाओं का एक समूह रोजाना सुबह-शाम यही काम करता है. साइकिल में डब्बा टांगकर महिलाएं तालाब आती हैं, यहां से पानी भरकर करीब 200 पौधों में पानी डालती हैं. बंजर जमीन पर लगे पौधों की सिंचाई के लिए बकायदा इनकी ड्यूटी लगाई गई है.
हमारी तरह पौधों को भी लगती है प्यास
सुबह-शाम पौधों की बुझाती हैं प्यास
गांव की ही निवासी पूजा कहती हैं कि पर्यावरण बचाने के लिए पौधों को बचाना जरूरी है. पौधों को बचाने की जिम्मेदारी हमारी है. पौधे नहीं बचाएंगे तो शुद्ध हवा कहां से मिलेगी. सभी लोगों को इसके लिए जागरूक होने की जरूरत है. पौधों को बचाने की जिम्मेदारी सबकी है और सबको अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए. बता दें कि महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत अंजोरा गांव में बड़े पैमाने पर पौधा रोपण किया गया है. इन्हीं पौधों को बचाने के लिए गांव की महिलाएं सुबह-शाम पौधों की प्यास बुझाने का काम कर रही हैं.