एनडीए के स्टार प्रचारक और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 24 अप्रैल को मधुबनी में रैली होने वाली है. इस रैली को सफल बनाने के लिए बिहार एनडीए के सभी नेता, केंद्रीय मंत्रियों के साथ-साथ राज्य की पूरी कैबिनेट ने ताकत झोंक रखी है. पीएम मोदी की सभा के लिए बीते एक सप्ताह से मधुबनी, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर और बेगूसराय जिले के सभी सांसद, विधायक और मंत्री गांव-गांव घूमकर भीड़ जुटाने का प्रयास कर रहे हैं. राज्य के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह और राज्यसभा सांसद संजय झा विशेष रूप से डेरा डाले हुए हैं. लेकिन जिस जुनून और तन्मयता से ललन सिंह जुटे हैं, वह बिहार एनडीए में काफी साल बाद देखने को मिल रहा है. ललन सिंह की अधिक सक्रियता से बिहार के सियासी गलियारे में यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या इस बार के चुनाव में ‘लल्लन पॉलिटिक्स’ ही असरदार रहेगी? बिहार एनडीए का सबसे पावरफुल नेता कौन है?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए में ताकत और प्रभाव दिखाने की जोर आजमाइश शुरू हो गई है. खासकर बिहार के चार नेताओं की मौजूदा राजनीतिक स्थिति, सामाजिक आधार, संगठनात्मक कौशल और गठबंधन के अंदर भूमिका की खूब चर्चा हो रही है. खासकर पीएम मोदी की 24 अप्रैल को मधुबनी की सभा को लेकर इन नेताओं में जो उत्साह देखा जा रहा है, वह शायद बीजेपी और जेडीयू गठबंधन में पहले नहीं देखा गया. पीएम मोदी की सभा को सफल बनाने के लिए केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह जो भूमिका निभा रहे हैं, वह पहले कभी नहीं देखी गई.
बिहार एनडीए का असली बॉस कौन?
हालांकि, इसके पीछे यह तर्क दिया जा सकता है कि यह पंचायती राज मंत्रालय से जुड़ा कार्यक्रम है क्योंकि ललन सिंह पंचायती राज मंत्रालय के मंत्री हैं, इसलिए उनकी भूमिका विशेष है. लेकिन जानकार कहते हैं कि ललन सिंह इतने सक्रिय कभी पीएम मोदी की रैली में नहीं रहे. इसके पीछे कई वजहें हैं. हाल के दिनों में पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ उनकी केमिस्ट्री बैठ रही है, जो एनडीए के लिए अच्छा संकेत माना जा रहा है. जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और ललन सिंह जिस तरह से पीएम मोदी की सभा को सफल बनाने के लिए जुटे हुए हैं, उससे लगता है कि इस बार पीएम मोदी की सभा में भीड़ का पुराने सारे रिकॉर्ड टूट जाएंगे.
चार शख्स, लेकिन असरदार कौन?
अगर इन चारों नेताओं का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाए तो उसमें भी ललन सिंह का कोई जवाब नहीं है. सम्राट चौधरी, संजय झा और नित्यानंद राय में ललन सिंह सबसे वरिष्ठ हैं. ललन सिंह सहित चारों व्यक्ति में संगठनात्मक कौशल है. तीनों या तो अपने पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं या फिर हैं. निश्चित तौर पर सम्राट चौधरी पार्टी के प्रमुख चेहरों में से एक हैं. कोइरी-कुशवाहा जाति से ताल्लुक रखते हैं. बीते कुछ सालों से बिहार बीजेपी के प्रमुख चेहरों में पहले नंबर पर हैं. लेकिन गैर-यादव ओबीसी वोट बैंक को आकर्षित करने में उतना सक्षम नहीं हैं, जो बिहार की जातिगत राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है. हरियाणा सीएम नायब सिंह सैनी द्वारा हाल ही में उनके नेतृत्व की प्रशंसा ने उनके कद को और बढ़ा दिया है, वहीं राजनीतिक दुश्मनी का भी डर सताने लगा है. अगर बीजेपी नीतीश कुमार के नेतृत्व को प्राथमिकता देती है तो उनके नेतृत्व को लेकर एनडीए में दुविधा हो सकती है.