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‘कृष्णा-कन्हैया’ पर कांग्रेस को भरोसा, तेजस्वी की बढ़ गई टेंशन….राहुल गांधी की चली तो कांग्रेस करेगी कमाल

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बिहार में कांग्रेस की सक्रियता अब महागठबंधन में आरजेडी से अधिक आगे दिखने लगी है. सिलसिले की शुरुआत राहुल गांधी के पखवाड़े भर के अंतराल में दो बार बिहार आने से हुई. राहुल गांधी ने दलित राजनीति को धार देने के लिए दो कार्यक्रमों में शिरकत की. कांग्रेस ने अपने प्रभारी कृष्णा अल्लावारु को बिहार में कैंप करने का आदेश दिया है. उनसे आलाकमान को लगातार फीडबैक मिल रहा है. अल्लावारु जिलों का लगातार दौरा कर रहे हैं. पहले बिहार पहुंच कर वे कांग्रेस नेताओं के बारे में पता कर रहे हैं. अब तो कन्हैया कुमार को भी कांग्रेस ने ड्यूटी पर लगा दिया है. कन्हैया 16 मार्च से बिहार में युवाओं को गोलबंद करने के लिए नौकरी दो, पलायन रोको यात्रा पर निकलने वाले हैं. पप्पू यादव का इकतरफा कांग्रेस प्रेम जगजाहिर है. कांग्रेस उनकी भूमिका के बारे में अभी खुल कर कुछ नहीं बोल रही, लेकिन इसे कांग्रेस की रणनीति माना जा रहा है. कांग्रेस में अपनी जन अधिकार पार्टी का विलय कर निर्दलीय सांसद बने पप्पू यादव की सक्रियता हाल के विधानसबा चुनावों में झारखंड और दिल्ली में भी दिखी थी. वे कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करते नजर आए. बिहार के मुद्दे पर मलिल्कार्जुन खरगे और राहुल गांधी के साथ 12 को होने वाली बिहार कांग्रेस नेताओं की बैठक भी अब होली बाद होगी. पहले 12 मार्च को बैठक होनी थी. कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व बिहार के बारे में और जानकारियां हासिल करना चाहता है. कई लोगों के बारे में फीड बैक अच्छा नहीं आया है. इस दायरे में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश कुमार सिंह भी हैं. ये कुछ ऐसे संकेत हैं, जो महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं. इससे आरजेडी की परेशानी बढ़ सकती है, जो महागठबंधन के सभी दलों पर अपना दबदबा कायम करना चाहता है.

कांग्रेस ने टाली बिहार पर बातचीत
मल्लिकार्जन खरगे और राहुलगांदी के सथ बिहार कांग्रेस नेताओं की बैठक की बैठक 12 मार्च को होने वाली बैठक होली वजह बता कर फिलहाल टाल दी गई है. हालांकि असल कारण कुछ दूसरा ही बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस अल्लावारु के जरिए कांग्रेस नेताओं के बारे में सूचनाएं जुटा रही है. कांग्रेस को ऐसी सूचनाएं मिल रही है कि बिहार में कांग्रेस को कुछ नेताओं ने आरजेडी का पिछलग्गू बना दिया है. राहुल गांधी ने हाल की अपनी गुजरात यात्रा में दो महत्वपूर्ण बातें कही थीं. हालांकि उन्होंने वहां कांग्रेस कते कुछ नेताओं की भाजपा से मिलीभगत की बात उठाई और ऐसे नेताओं की पहचान कर मुख्य धारा से हटाने की जरूरत बताई. दूसरी बात उन्होंने कही कि अब तक जो बाराती थी, उन्हें मोर्चे पर भेजा जाएगा और वर को आइसोलेशन में डाला जाएगा. संभव है कि बिहार में कांग्रेस इसे लागू भी कर दे. कन्हैया, अल्लावारु और पप्पू यादव पर कांग्रेस अगर भरोसा जताती है तो इसे राहुल गांधी की बातों पर अमल माना जाएगा.

पप्पू-कन्हैया को क्या पचा पाएगा RJD
अल्लावारु के अलावा पप्पू यादव और कन्हैया कुमार का दखल बढ़ने की खबरों से जाहिर है कि आरजेडी खुश नहीं होगा. आरजेडी से दोनों का 36 का आंकड़ा रहा है है. कन्हैया कुमार 2019 में आरजेडी के अड़ियल रवैए से नाकुश व्यक्ति हैं तो पप्पू यादव को बीते साल ही लोकसभा चुनाव में आरजेडी के अड़ियल रुख का सामना करना पड़ा. कन्हैया जब बेगूसराय से सीपीआई के टिकट पर सांसदी का चुनाव लड़ रहे थे तो आरजेडी ने अपना उम्मीदवार भी उतार दिया था. कहा तो यह भी जाता है कि आरजेडी ने तब भीतरी तौर पर भाजपा प्रत्याशी की मदद भी की थी. हालांकि इस चर्चा का का कोई प्रमाण नहीं मिलता. पप्पू यादव ने पूर्णिया से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए कौन से जतन नहीं किए. पर, आरजेडी ने वहां अपना उम्मीदवार उतार कर मनमानी की. इतना ही नहीं, पप्पू जब निर्दलीय मैदान में उतरे तो आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने उन्हें हराने के लिए 40 विधायकों की टीम के साथ वहां डेरा जमा लिया. वे खुल कर कहते थे कि आरजेडी की जगह भले एनडीए उम्मीदवार को वोट दें, लेकिन पप्पू यादव को हराएं. ऐसे में आरजेडी कन्हैया और पप्पू के उभार को कैसे बरदाश्त करेगी.

पप्पू और कन्हैया लालू को नापसंद
पप्पू यादव कहते रहे हैं कि कांग्रेस को अब किसी की छत्रछाया में रहने के बजाय बाहर आना चाहिए. यह महागठबंधन में आरजेडी की सुपरमेसी को पप्पू की खुली चुनौती है. जाहिर है कि यह तेजस्वी यादव या आरजेडी के किसी भी नेता को नागवार लगेगा. कन्हैया से तेजस्वी के रिश्तों की एक बानगी कापी होगी. पिछले साल पटना में किसी जातीय कार्यक्रम में कन्हैया गेस्ट के तैर पर पहुंचे. उस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे तेजस्वी यादव. कन्हैया के कार्यक्रम में शामिल होने की सूचना पाकर तेजस्वी ऴहां नहीं पहुंचे.

अब कृष्णा और कन्हैया के हाथ कमान!
कांग्रेस से जैसे संकेत मिल रहे हैं, उनसे यही लगता है कि बिहार विधानसबा चुनाव की कमान ये ही दोनों संभालेंगे. उम्मीदवार चयन से लेकर टिकट वितरण तक की जिम्मेवारी इन्हीं दोनों की होगी. बिहार आते ही अल्लावारु के तेवर से साफ दिख रहा है कि कांग्रेस इस बार आरजेडी के आगे नतमस्तक होकर नहीं रहने वाली. पिछली बार की 70 सीटों से कम पर कांग्रेस मानने को तैयार नहीं. वह भी छांटी-छोड़ी नहीं, मनचाही सीटें चाहिए. बहरहाल, कांग्रेस अगर प्रदेश अध्यक्ष को बदलती है या उन्हें आइसोलेट कर देती है तो इसे अल्लावारु के फीड बैक का असर माना चाना चाहिए. कन्हैया तो महागठबंधन में सम्मान न मिल पाने पर 243 सीटों पर लड़ने की बात पिछले दिनों बिहार की पहली यात्रा में कर चपुके हैं. इससे आरजेडी की चिंता बढ़नी स्वाभाविक है. महागठबंधन के नए घटक बने वीआईपी के मुकेश सहनी 60 सीटें मांग रहे हैं तो सीपीआई (एमएल) पिछले परपार्मेंस के आधार पर सीटों की देवादारी कर रही है. पिछली बार मिलीं 19 सीटों में 12 पर सीपीआई (एमएल) की जीत हुई थी.

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