भारत सरकार पांच सरकारी बैंकों में अपनी हिस्सेदारी 20 फीसदी तक बेच सकती है. यह फैसला बाजार में सरकारी हिस्सेदारी कम करने के लिए लिया जा रहा है. साथ ही, यह बिक्री सेबी (SEBI) के नियमों का पालन करने के लिए भी की जा रही है. इस फैसले से निवेशकों को अधिक अवसर मिलेंगे और बैंकों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी.
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार जिन पांच बैंकों में हिस्सेदारी बेच सकती है, उनके नाम बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, और पंजाब एंड सिंध बैंक हैं. बताया गया है कि सरकार इन बैंकों में अपनी हिस्सेदारी धीरे-धीरे घटाएगी. हर बैंक में सरकारी हिस्सेदारी को 75 फीसदी से नीचे लाया जाएगा.
सेबी के नियमों का पालन जरूरी
भारतीय शेयर बाजार के नियामक सेबी (SEBI) के नियमों के अनुसार, किसी भी लिस्टेड कंपनी में कम से कम 25 फीसदी हिस्सेदारी आम जनता के पास होनी चाहिए. इसका मतलब यह है कि सरकार को अपनी हिस्सेदारी कम करनी होगी.
सरकार दो तरीकों से हिस्सेदारी बेच सकती है. पहला तरीका ऑफर फॉर सेल (OFS) है. इस प्रक्रिया में सरकार सीधे शेयर बाजार में हिस्सेदारी बेचती है. दूसरा तरीका क्वालिफाइड इंस्टिट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP) है. इसमें सरकार बड़े संस्थागत निवेशकों
सरकार इस हिस्सेदारी को बेचने के लिए बैंकिंग सलाहकारों की मदद लेगी. 25 फरवरी को खबर आई थी कि DIPAM (डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट) ने इसके लिए मर्चेंट बैंकरों से बोलियां मांगी हैं. DIPAM ने रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RFP) जारी किया है. इसके तहत जो मर्चेंट बैंकर चुने जाएंगे, वे तीन साल तक सरकार की मदद करेंगे. जरूरत पड़ने पर इस अवधि को एक साल तक बढ़ाया जा सकता है.
ये बैंकिंग सलाहकार सरकार को यह बताएंगे कि कब और कैसे हिस्सेदारी बेची जाए. वे बाजार की स्थिति का विश्लेषण करेंगे और सही समय पर हिस्सेदारी बिक्री में मदद करेंगे. इस फैसले से सरकारी बैंकों में निजी निवेश बढ़ेगा. इससे बैंकों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी. साथ ही, शेयर बाजार में निवेशकों को भी नए अवसर मिलेंगे.