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क्या राज्यपाल किसी विधानसभा सत्र को कर सकते हैं अमान्य, जैसा मणिपुर में हुआ, क्या कहता है संविधान

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मणिपुर विधानसभा के राज्यपाल ने 10 फरवरी से शुरू होने वाले 12वीं मणिपुर विधानसभा के 7वें सत्र को तत्काल प्रभाव से “अमान्य” घोषित कर दिया. सवाल उठता है कि क्या राज्यपाल ऐसा कर सकते हैं. भारत में ऐसा कभी हुआ नहीं है. राज्यपाल सत्र को आगे पीछे तो कर सकते हैं लेकिन अमान्य करने को लेकर असमंजस है. संविधान इसे लेकर क्या व्याख्या की गई है.

मणिपुर के राज्यपाल अजय भल्ला ने जो विधानसभा सत्र को अमान्य करने के लिए जो नोटिस जारी की. उसमें कहा गया है, “भारत के संविधान के अनुच्छेद 174 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, मैं, अजय कुमार भल्ला, मणिपुर का राज्यपाल, आदेश देता हूं कि 12वीं मणिपुर विधानसभा के 7वें सत्र को बुलाने के पिछले निर्देश को तत्काल प्रभाव से निरस्त घोषित किया जाता है.”

इसके बाद चंद घंटों बाद शुरू होने वाला विधानसभा का सत्र अमान्य हो गया. शुरू ही नहीं हो सका. इस सत्र में कांग्रेस मणिपुर के मुख्यमंत्री एन वीरेन सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा कर चुकी थी, जो अब वह नहीं कर पाएगी. हालांकि इससे पहले वीरेन सिंह ने इस्तीफा भी दे दिया. अब हम ये जानेंगे कि राज्यपाल किन अधिकारों के तहत किसी विधानसभा के सत्र को खारिज या अमान्य कर सकते हैं.

किसी विधानसभा के सत्र को अमान्य घोषित किया जाता है, तो इसके कई कानूनी और प्रशासनिक प्रभाव हो सकते हैं. ये प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि सत्र को किस आधार पर अमान्य घोषित किया गया है और किस प्राधिकरण (अदालत, राज्यपाल, या स्पीकर) द्वारा इसे अवैध माना गया है. अगर ऐसा हुआ तो सत्र में लिए गए फैसले और विधेयक खुद ब खुद अमान्य हो जाते हैं. वैसे भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ये पहली बार हो रहा है कि राज्यपाल ने नोटिस जारी करके किसी सत्र को रद्द या अमान्य कर दिया है.

ऐसा करने पर संविधानिक संकट की स्थिति तो पैदा हो ही जाएगी. अगर सरकार द्वारा बुलाए गए सत्र को अवैध कर दिया जाए तो ये सरकार की वैधता पर सवाल खड़ा होता है. राज्यपाल ने ये बात स्पष्ट नहीं की है कि उन्होंने विधानसभा का सत्र क्यों अमान्य घोषित किया है. लेकिन ये समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री के सत्र शुरू होने से पहले इस्तीफा देने के कारण उन्होंने ऐसा किया होगा. हालांकि राज्यपाल आमतौर पर किसी मुख्यमंत्री द्वारा इस्तीफा देने के बाद उसे नए नेता के चयन तक पद पर काम करने के लिए कहता है.

विधानसभा का पुनर्गठन या नया सत्र बुलाया जा सकता है – यदि तकनीकी कारणों से कोई सत्र अमान्य घोषित होता है, तो राज्यपाल या स्पीकर को नया सत्र बुलाने की आवश्यकता पड़ सकती है.नहीं, राज्यपाल स्वयं किसी विधानसभा सत्र को अमान्य घोषित नहीं कर सकता. हालांकि उसकी कुछ संवैधानिक भूमिकाएं होती हैं जो विधानसभा सत्र से संबंधित होती हैं. राज्यपाल किसी विधानसभा सत्र को लेकर असहमति जता सकता है, लेकिन वह इसे खुद अमान्य घोषित नहीं कर सकता.राज्यपाल के पास सत्र को बुलाने और स्थगित करने की शक्ति होती है, लेकिन उसे अमान्य घोषित करने का अधिकार नहीं होता. यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो इसका अंतिम निर्णय अदालत ही करेगी.

– अनुच्छेद 174 के तहत राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह विधानसभा का सत्र बुलाए, स्थगित करे और भंग करे लेकिन यह कार्य मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है.
– राज्यपाल विधानसभा सत्र को अवैध घोषित नहीं कर सकता, लेकिन यदि किसी सत्र की वैधता पर विवाद होता है, तो यह मामला न्यायपालिका (उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय) द्वारा तय किया जाता है. विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) को भी सत्र की कार्यवाही की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार होता है.

अनुच्छेद 174 का खंड (1) राज्य विधानमंडल (विधानसभा और विधान परिषद) के सत्रों को बुलाने और एक सत्र से दूसरे सत्र के बीच अधिकतम अंतराल को निर्धारित करता है.
ये कहता है, “राज्यपाल समय-समय पर प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के प्रत्येक सदन का सत्र आहूत करेगा. इस प्रकार के दो सत्रों के बीच छह महीने का अंतराल नहीं होगा.”

यानि सत्र बुलाने की शक्ति राज्यपाल के पास होती है, लेकिन यह शक्ति वह मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर प्रयोग करता है. एक सत्र और अगले सत्र के बीच अधिकतम अंतराल छह महीने से अधिक नहीं हो सकता. मतलब ये है कि विधानसभा को कम से कम छह महीने में एक बार अवश्य मिलना चाहिए.

भारत में विधानसभा सत्रों को अमान्य घोषित करने की घटनाएं अत्यंत दुर्लभ हैं और शायद नहीं के बराबर हैं. ऐसी स्थिति तब उत्पन्न होती है जब सत्र को बुलाने, संचालन, या उसमें पारित विधेयकों में संवैधानिक या कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन हो. इन मामलों में, न्यायपालिका (उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय) ही अंतिम निर्णय देती है.
हालांकि, सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध जानकारी के अनुसार, भारत में किसी विधानसभा सत्र को पूरी तरह से अमान्य घोषित करने की कोई प्रमुख घटना दर्ज नहीं है.

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