आपकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में चला जाता है? लेकिन अब ऐसा नहीं होगा! केंद्र सरकार ने नए टैक्स व्यवस्था में ऐसे बदलाव किए हैं जो आपकी जेब में पहले के मुकाबले ज्यादा पैसा छोड़ेंगे. यदि आपकी सालाना आय 12 लाख रुपये तक है, तो अब आपको कोई इनकम टैक्स नहीं देना होगा. यही नहीं, सैलरी पाने वालों के लिए 75,000 रुपये का स्टैंडर्ड डिडक्शन भी जोड़ा गया है, जिससे टैक्स-फ्री आय की सीमा 12.75 लाख रुपये तक पहुंच गई है. ओल्ड टैक्स रिजीम में सरकार ने कोई बदलाव नहीं किया है. ऐसे में सवाल यह है कि क्या न्यू टैक्स रिजीम अब पुरानी टैक्स व्यवस्था से बेहतर हो गया है? चलिए जानते हैं.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल के बजट में न्यू टैक्स रिजीम को और आकर्षक बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं. अब 12 लाख रुपये तक की सालाना आय वाले व्यक्तियों को कोई टैक्स नहीं देना होगा. नई व्यवस्था में 20 लाख से 24 लाख रुपये तक की आय के लिए 25% का एक नया टैक्स स्लैब भी जोड़ा गया है. फिलहाल न्यू रिजीम में 7 टैक्स स्लैब हैं, जो इस प्रकार हैं-
इनकम टैक्स स्लैब | टैक्स की दर |
₹ 4,00,000 तक | NIL |
₹ 4,00,001 – ₹ 8,00,000 | 5% |
₹ 8,00,001 – ₹ 12,00,000 | 10% |
₹ 12,00,001 – ₹ 16,00,000 | 15% |
₹ 16,00,001 – ₹ 20,00,000 | 20% |
₹ 20,00,001 – ₹ 24,00,000 | 25% |
₹ 24,00,000 से अधिक | 30%
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न्यू टैक्स रिजीम में टैक्स दरें कम हैं, लेकिन इसमें छूट और कटौतियां कम हैं. वहीं, पुरानी व्यवस्था में सेक्शन 80C के तहत PPF, ELSS, और LIC प्रीमियम जैसे निवेशों पर 1.5 लाख रुपये तक की कटौती मिलती है. नए रिजीम में ये छूट खत्म कर दी गई हैं, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण कटौतियां जैसे कि हाउसिंग लोन पर ब्याज (सेक्शन 24(b)) और नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) में नियोक्ता के योगदान (सेक्शन 80CCD(2)) को बरकरार रखा गया है.
नए टैक्स रिजीम में हाउसिंग लोन पर ब्याज पर आप कटौती ले सकते हैं, लेकिन केवल तभी, जब आपने अपनी प्रॉपर्टी को रेंट पर दे रखा होगा. ऐसे में आपको रेंट से होने वाली आय को भी अपनी कुल आय में गिनना होगा. जबकि पुरानी व्यवस्था के मुताबिक, प्रॉपर्टी सेल्फ ऑक्यूपाइड हो या फिर रेंट पर, आप कटौती के हकदार होते हैं.
कौन सी व्यवस्था आपके लिए बेहतर?
टैक्स विशेषज्ञों का मानना है कि यदि आप टैक्स बचाने वाले निवेशों में ज्यादा पैसा नहीं लगाते हैं, तो न्यू टैक्स रिजीम आपके लिए फायदेमंद हो सकती है. इसकी सरलता और कम दरें आपकी टैक्स बचत को बढ़ा सकती हैं. वहीं, यदि आप पुरानी व्यवस्था के तहत अधिक से अधिक कटौतियों का लाभ उठाते हैं, तो आपके लिए पुरानी व्यवस्था ही बेहतर हो सकती है.