भोपाल
साइबर ठगी के जाल में लोग हर पल फंस रहे हैं। ऑनलाइन बिजली का बिल भरने से लेकर होटल की बुकिंग तक में साइबर ठगों का जाल फैला हुआ है। जांच में सामने आया है कि ठगी का यह जाल बैंकों और टेलीकॉम कंपनियों की ढील से फैल रहा है, क्योंकि बैंक नियमों को ताक में रखकर बिना सत्यापन किए ही खाते खोल रहे हैं।
साथ ही एसटीआर की जांच भी नहीं हो रही है। टेलीकॉम कंपनियां भी बिना संपूर्ण सत्यापन के सिम जारी कर रही हैं। खाते और नंबर के इन्हीं हथियारों का फायदा उठाकर ठग वारदात करते हैं। वहीं लोगों को ठगी का शिकार बनाने वाले अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस भी संख्या बल की कमी से जूझ रही है।
बीते एक साल में ऐसे केस में 93 गिरफ्तारियां हुईं
बीते एक वर्ष में भोपाल साइबर क्राइम सेल में साढ़े पांच हजार से अधिक शिकायतें पहुंची हैं। इनमें महज 61 एफआईआर ही दर्ज की गई हैं और इन मामलों में 93 गिरफ्तारियां हुई हैं। जिस सेल में रोजाना करीब 30 शिकायतें पहुंच रही हैं, वहां तीन महीने से एक भी इंस्पेक्टर नहीं है।
जिन चुनिंदा मामलों में पुलिस हस्तक्षेप कर अपराधियों को पकड़ने का प्रयास करती है, उनमें क्राइम ब्रांच के ही इंस्पेक्टरों को कमान सौंप दी जाती है।
बैंक और टेलीकॉम कंपनियों की चूक
बैंक : कई निजी बैंकों के कर्मचारी लक्ष्य पूरा करने के लिए बिना केवाईसी और फिजिकल वेरीफिकेशन के खाते खुलवा देते हैं, जबकि आरबीआई की एडवाइजरी के अनुसार ई-केवाईसी आवश्यक है। ठगी के लिए उपयोग किए जाने वाले फर्जी बैंक खातों के लेनदेन के लिए आरबीआई ने एसटीआर (सस्पीशियस ट्रांजेक्शन रिपोर्ट) की व्यवस्था शुरू की है।
यदि बैंक खातों में अचानक बढ़ते हुए लेन-देन की जानकारी पुलिस से साझा की जाए तो इस पर भी लगाम लगाई जा सकती है। फर्जी दस्तावेजों पर बैंक खाते खुलवाने का एक बड़ा मामला हाल ही में भोपाल में सामने आया था, जहां एक गिरोह दो साल से देशभर में 1800 से अधिक खाते खुलवा चुका था। उसे भोपाल पुलिस ने पकड़ा था।
टेलीकॉम कंपनी : साइबर अपराध की पहली कड़ी फोन काल से ही जुड़ी है। टेलीकॉम कंपनियां बिना पुख्ता सत्यापन के सिमें उपलब्ध कराती हैं। इन्हीं सिमों का उपयोग कर लोग ठगी को अंजाम देते हैं।
फर्जी तरीके से सिमों की खरीदी बंद होने से अपराध में आएगी कमी
साइबर अपराध रोकने के लिए बैंकों और टेलीकॉम कंपनियों को भी अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता है। यदि फर्जी तरीके से सिमों की खरीदी बंद हो और बैंक भी लेनदेन की जानकारी उपलब्ध कराएं तो अपराध में निश्चित ही कमी आएगी। हमारे पास पुलिस बल सीमित हैं। एक दिसंबर से थानों में साइबर डेस्क शुरू होगी तो साइबर क्राइम सेल का भार कम हो सकेगा।
हरिनारायणाचारी मिश्र, पुलिस आयुक्त