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क्लाइमेट चेंज के कारण खस की घास से तेल का उत्पादन 2023 में 20% तक गिरा

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कानपुर
 क्लाइमेट चेंज का असर सिर्फ आम लोगों की सेहत या अनाज उत्पादन तक सीमित नहीं रह गया है। जबर्दस्त गर्मी और अनिश्चित मौसम ने खस को भी झटका दिया है। खस की घास से असेंशियल ऑइल का उत्पादन घटने लगा है। 2023 में हाथरस बेल्ट खस के तेल के उत्पादन में 20% तक गिरावट दर्ज हुई है।

कन्नौज में तो खस की घास से निकलने वाले तेल की मात्रा में एक तिहाई तक कम हो गई। कन्नौज के सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र (एफएफडीसी) के डायरेक्टर शक्ति विनय शुक्ला का कहना है कि क्लाइमेट चेंज के कारण खस और पचौली के पौधों से निकलने वाला तेल कम हुआ। इस वजह से इनसे बनने वाले इत्र, परफ्यूम व अन्य उत्पादों की कीमत बढ़ने लगी है।

देश में खस घास की 4-5 किस्में मिलती हैं। यूं तो खस जंगलों और नदी के किनारे उगती है, पर खस की खास प्रजातियों की खेती भी की जाती है। अलग-अलग क्षेत्रों में दिवाली के बाद से मार्च तक खस की घास से तेल निकाला जाता है। 2022 तक तो खस के तेल का उत्पादन ठीक था, लेकिन 2023 में झटका लगा।

हाथरस के इत्र कारोबारी लव शर्मा के अनुसार, 2022 में एक क्विंटल घास से 100 ग्राम तेल निकलता था, 2023 में यह घटकर 80 ग्राम रह गया। इस बार भी गर्मी का असर देखने लायक होगा। हाथरस में 2-3 दिन में खस का डिस्टिलेशन शुरू हो जाएगा।

ज्यादा फसल लेने की चाह भी है वजह

कन्नौज के इत्र एक्सपोर्टर प्रांजुल कपूर ने बताया कि मौसम ने निश्चित तौर पर इत्र/परफ्यूम के कारोबार पर असर डाला है। उत्पादकता घटी है, लेकिन इसके कई अन्य कारण भी हैं। पहले माना जाता था कि खस की बढ़िया उपज लेने के लिए घास की जड़ एक बार तोड़ने के बाद तीन साल तक उसे नहीं तोड़ना चाहिए।

इस अंतराल में जड़ ज्यादा परिपक्व होती है और डिस्टिलेशन में तेल भी बढ़िया निकलता है, लेकिन बढ़ती मांग के कारण अब कोई रुकने को तैयार नहीं है। कन्नौज में पैदा होने वाला गुलाब और बेला के फूलों से भी कम तेल निकल रहा है।

रु. 28 हजार तक बढ़ गए दाम

प्रांजुल बताते है कि पहले दुनिया में खस के तेल का बड़ा स्रोत हैती और डॉमिनिकन रिपब्लिक था, लेकिन वहां से इसकी सप्लाई बंद हो चुकी है। इस वजह से दुनिया अब खस की आपूर्ति के लिए भारत की तरफ देख रही है। एक साल पहले तक 62 हजार रुपये/किलो बिकने वाली 'रूह खस' ऑइल अब 80 हजार रुपये/किलो बिक रहा है।

साधारण खस का ऑइल 14-15 हजार रुपये/किलो से बढ़कर 23 हजार रुपये तक पहुंच गया है। खस के दाम पर उसकी किस्म, डिस्टिलेशन और जगह का भी असर होता है।

पचौली की फसल खराब, कीमत बढ़ी

भारत में पचौली के तेल का भी इत्र और परफ्यूम में खूब इस्तेमाल होता है। पचौली के फूल और पत्तियां इंडोनेशिया से आते हैं। क्लाइमेट चेंज के कारण वहां भी फसल खराब हुई है। पचौली ऑइल के बढ़कर 16-19 हजार रुपये/किलो तक चल रहे हैं, जबकि 2 साल पहले दाम 3500-4000 रुपये/किलो की रेंज में होते थे। भारत में पूर्वोत्तर में पचौली का थोड़ा उत्पादन होता है।

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