Home धर्म-आध्यात्म सिद्ध पीठों में प्रमुख है हरिद्वार का मनसा देवी मंदिर

सिद्ध पीठों में प्रमुख है हरिद्वार का मनसा देवी मंदिर

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प्रसिद्ध मनसा देवी माता का मंदिर देवभूमि हरिद्वार में हरकी पैड़ी के पास गंगा के किनारे स्थित है। नवरात्रि के दिनों में यहां माता के दर्शनों के लिए लंबी लंबी लाइनें तो लगती ही हैं साथ ही सामान्य दिनों में भी यहां श्रद्धालुओं की काफी अच्छी संख्या रहती है। जिसको देखते हुए मंदिर प्रशासन ने माता के दर्शनों और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए व्यापक व्यवस्था की है।

मंदिर चूंकि पहाड़ी पर स्थित है इसलिए यहां तक पहुंचने के लिए ट्राली का उपयोग किया जाता है। यदि कोई महंगी ट्राली से सफर नहीं करना चाहे तो उसके लिए पहाड़ी पर ही सड़क मार्ग भी बनाया गया है जहां पैदल यात्रा के साथ ही स्थानीय ऑटो रिक्शा के जरिये पहुंचा जा सकता है। यहां चलने वाली ट्राली श्रद्धालुओं को खूब आकर्षित करती है और इसके चलते यह धार्मिक पर्यटन स्थल का रूप ले चुका है। यहां चलने वाली ट्राली को मनसा देवी उड़नखटोला के नाम से भी जाना जाता है। रोपवे से श्रद्धालुओं को मंदिर लाने ले जाने का काम सुबह आठ बजे से सायं पांच बजे तक चलता है। दिन में यह 12 से 2 बजे तक भोजन के लिए यह सेवा बंद कर दी जाती है।

यहां स्थित माता मनसा देवी को सिद्ध पीठों में प्रमुख माना जाता है। यह हरिद्वार स्थित तीन सिद्धपीठों में से एक है। अन्य दो सिद्धपीठ हैं चंडी देवी मंदिर और माया देवी मंदिर। मान्यता है कि जो श्रद्धालु यहां सच्चे मन से मां की पूजा अर्चना कर मुराद मांगते हैं माता उनकी इच्छा जरूर पूरी करती हैं। धार्मिक ग्रंथों और पुराणों के मुताबिक मनसा देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ। वह राजा वासुकी की पत्नी हैं। कहा जाता है कि मनसा देवी ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या किया और साथ ही वेदों का अध्ययन भी किया जिसके फलस्वरूप उन्हें कृष्ण मंत्र प्राप्त हुआ जिसे कल्पतरू कहा जाता है। देवी ने बाद में पुष्कर में कई युगों तक तप किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि देवी तुम्हारी तीनों लोकों में पूजा होगी।

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि आशुतोष भगवान की पुत्री मनसा को ऋषि कश्यप ने अपने संरक्षण में पाला और सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने उनका नामकरण किया। ब्रह्मा ने नामकरण के बाद बताया कि कोई भी विष इस देवी के सामने तुच्छ है इसलिए इस देवी का नाम विषहरि होगा। इसी कारण समस्त नागों और भगवान शिव ने उन्हें स्वीकार किया। मनसा देवी को भगवान शिव की मानसपुत्री के रूप में भी जाना जाता है।

मनसा देवी की पूजा ज्येष्ठ मास की दशहरा तिथि यानी गंगा दशहरा के दिन बंगाल में कई जगह की जाती है। मनसा देवी की पूजा के बाद ही नागों की पूजा करने का प्रचलन है। मान्यता है कि जो व्यक्ति देवी के बारह नामों का उच्चारण करता है, उसके वंशजों को भी सर्प भय नहीं रहता। देवी के यह बारह नाम इस प्रकार हैं− जरत्कारू, जगदगौरा या जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी।

मनसा देवी के मंदिर आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए यहां लगे वृक्षों में एक धागा बांधते हैं। जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वह पुनः मंदिर आते हैं और वह धागा खोलकर मनसा देवी की पूजा करते हैं। श्रद्धालुओं की ओर से मनसा देवी की पूजा के दौरान माता को फल, नारियल, फूल और श्रृंगार सामग्री अर्पित की जाती है।

 

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