प्रदेश में चल रही टीचर भर्ती प्रक्रिया में अब आरक्षण का विवाद हाईकोर्ट पहुंच गया है। आरक्षण नियमों का उल्लंघन करने को लेकर दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इसके साथ ही केस के फैसले से नियुक्ति प्रक्रिया को बाधित रखा है।
कामेश्वर कुमार यादव, योगेन्द्र मनी वर्मा सहित अन्य ने अपने एडवोकेट के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें बताया गया है कि राज्य शासन ने शिक्षक के टी-संवर्ग के 4 हजार 659 एवं ई- संवर्ग के 1 हजार 113 पदों की भर्ती के लिए चार मई को विज्ञापन जारी किया है। इसमें सहायक शिक्षक पद के लिए भी आवेदन आमंत्रित किया गया है।
याचिका में बताया गया है कि छत्तीसगढ़ लोक सेवा (अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण) नियम 1994 के तहत तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग पदों के लिए अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 20 प्रतिशत एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना है।
भर्ती प्रक्रिया में राज्य शासन ने अनुसूचित जनजाति को 65 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दे दिया है। राज्य शासन का यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के खिलाफ है। याचिकाकर्ताओं ने आरक्षण व्यवस्था को लेकर कहा है कि राज्य शासन द्वारा वर्ष 2011 में 50 से 58 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाने की अधिसूचना को भी छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने निरस्त कर दिया है।
शासन के जवाब पर अधिवक्ता ने उठाए सवाल
राज्य शासन की तरफ से पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधिकारियों ने कोर्ट को बताया कि कुछ बैकलॉग पद जुड़े होने के कारण इस प्रकार का आरक्षण किया गया है। इस पर याचिकाकर्ताओं की तरफ से आपत्ति की गई कि विज्ञापन में कितने पद बैकलॉग के हैं और किस वर्ग के हैं। यह भी नहीं बताया गया है। नियम के अनुसार अगर बैकलॉग पद है तो उसे विज्ञापन में स्पष्ट करना जरूरी है। लेकिन, बिना किसी विवरण के राज्य शासन अनुसूचित जनजाति को नियम विरूद्ध आरक्षण नहीं दे सकता।