20 मई 2011 से पश्चिम बंगाल के भारतीय राज्य की आठवीं और वर्तमान मुख्यमंत्री के रूप में सेवा कर रही हैं, जो इस पद को संभालने वाली पहली महिला हैं. कुल 13 साल वो प्रदेश की लगातार मुख्यमंत्री हैं. पर जिस तरह कोलकाता डॉक्टर रेप और मर्डर केस में लीपापोती हो रही है उससे लगता नहीं है कि चौथे टर्म के लिए जनता उनको फिर से चुनने की गलती करेगी. जिस तरह का माहौल उनके खिलाफ बन रहा है, कम से कम उससे तो यही लग रहा है. पार्टी में उनके खिलाफ गुस्सा बढ़ रहा है, घर में भी सब ठीक नहीं लग रहा है. विपक्ष लगातार हमलावर है. कांग्रेस से भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है. भाई अभिषेक बनर्जी से बढ़ती दूरी उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं. 1993 में नादिया जिले में हुए एक बलात्कार पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए वो राइटर्स बिल्डिंग में घुस गईं थीं. तत्कालीन ज्योति बसु की वामपंथी सरकार ने उन्हें घसीटते हुए बाहर कर दिया था. ठीक तीन दशक के बाद एक बलात्कार केस में पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए जनता अब उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने के लिए तैयार दिख रही है. आइये देखते हैं कि वो कौन से कारण हैं जिससे ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी की सत्ता की बागडोर कमजोर पड़ रही है.
1- अपने घर में अकेले पड़ीं ममता बनर्जी, अभिषेक की नाराजगी बहुत कुछ कहती है
ममता बनर्जी की मुश्किल यह है कि वह अपने भतीजे का सहारा भी लेना चाहतीं हैं और उन्हें नंबर 2 की पोजिशन पर देखना भी नहीं चाहती हैं. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि टीएमसी के बहुत से अच्छे और बुरे कार्यों में अभिषेक बनर्जी अपनी बुआ ममता बनर्जी के साथी रहे हैं. ममता बनर्जी की कुर्सी को सुरक्षित रखने में अभिषेक की रीढ़ का भी योगदान रहा है. पर पिछले कुछ वर्षों में ममता बनर्जी को लगता है कि उनका भतीजा उनकी कुर्सी हड़प सकता है. इसलिए कई बार आशंकित होकर अपने अभिषेक को उनकी जगह बताती रही हैं. 2023 में एक बार तो ऐसा लगा कि ममता की जगह अभिषेक काबिज ही हो जाएंगे. नेताजी इंडोर स्टेडियम में पार्टी की बैठक हुई और अभिषेक बनर्जी की तस्वीर तक नहीं लगाई गई. टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष जो अभिषेक बनर्जी के खासम खास माने जाते हैं ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि अभिषेक बनर्जी स्वास्थ्य कारणों से मीटिंग में हिस्सी नहीं ले पाए पर उनकी तस्वीर तो लगनी ही चाहिए थी.
डायमंड हार्बर के सांसद अभिषेक ने जिस तरह कोलकाता रेप केस पर ममता सरकार के खिलाफ बयानबाजी की है, उससे साफ लगता है कि ममता से इस मामले को लेकर मतभेद बढ़ा है. अभिषेक ने आरजी कर अस्पताल मामले पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में आरोपियों के खिलाफ मुठभेड़ की मांग की थी. अभिषेक ने 9 अगस्त को अपराध का पता चलने के बाद जब पार्टी के शीर्ष नेता एक ही राय में दिख रहे थे तब अभिषेक ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए कहा, ये बलात्कारी समाज में रहने के लायक नहीं हैं, उन्हें तो मुठभेड़ में मारा जाना चाहिए या फांसी पर लटकाया जाना चाहिए. यही नहीं इस मामले में ममता के विरोध मार्च में भी उनकी अनुपस्थिति भी लोगों को हैरान कर रही थी. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि अभिषेक के निर्वाचन क्षेत्र डायमंड हार्बर के टीएमसी नेताओं ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में इस पर टिप्पणी करते हुए कहा: ‘सोमोयेर डीएएके, सेनापति पोथ देखक (यह समय की मांग है कि जनरल रास्ता दिखाएं)’ सेनापति शब्द का इस्तेमाल अभिषेक के लिए किया गया था.
अभिषेक के करीबी नेताओं का मानना है कि घोष को दोबारा नियुक्त करने में आवाज की कमी और भीड़ को रोकने में विफलता ऐसी गलतियां थीं जो पूरी तरह से अनावश्यक थीं और टालने योग्य थीं. अभिषेक ने एक्स पर पोस्ट किया कि उन्होंने कोलकाता पुलिस आयुक्त को फोन किया था और उनसे कहा था कि यह सुनिश्चित करें कि हिंसा के लिए हर व्यक्ति जिम्मेदार हो…पहचान की जाती है, जवाबदेह ठहराया जाता है, और अगले 24 घंटों के भीतर कानून का सामना करने के लिए मजबूर किया जाता है, भले ही उनकी राजनीतिक संबद्धता कुछ भी हो.
2-पार्टी में विरोध खतरनाक लेवल पर
कोलकाता रेप केस को जिस तरह ममता सरकार ने डील किया है उससे पार्टी में उनके खिलाफ आवाज उठ रही है . ऐसा पहली बार हुआ है कि उनके खास लोग ही उनके खिलाफ बोलने लगे हैं. पर ममता सरकार के तानाशाही पूर्ण रवैये के चलते पार्टी में उनके खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं. टीएमसी के राज्यसभा सदस्य सुखेंदु शेखर राय और पूर्व सांसद शांतनु सेन ने अपनी तल्ख टिप्पणियों से पार्टी और सरकार को मुश्किल में डाल दिया है. सुखेंदु शेखर राय ने इस मुद्दे पर पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ जा कर कोलकाता पुलिस और आरजी कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल के कामकाज पर सवाल उठाते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है. राय ने इस मुद्दे पर शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को भेजे एक पत्र में हर ज़िले में तीन-तीन फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने और ऐसे मामलों का निपटारा छह महीने में करने की अपील की है.
हालांकि उनकी गुस्ताखी देखते हुए कोलकाता पुलिस ने उनको समन भेज कर पुलिस मुख्यालय तलब किया था. यही हाल पार्टी के प्रवक्ता और शांतनु सेन के खिलाफ भी हुआ. पूर्व सांसद शांतनु सेन ने भी इस मामले में बगावती तेवर दिखाए थे.उसके फ़ौरन बाद उनको पार्टी के प्रवक्ता पद से हटा दिया गया.शांतनु सेन आरजीकर मेडिकल कॉलेज के छात्र रहे हैं. उन्होंने कहा था कि बीते तीन साल से उस मेडिकल कॉलेज में अनियमितताओं की शिकायतें मिल रही थीं और कुछ लोग स्वास्थ्य विभाग में होने वाली गड़बड़ियों की जानकारी मुख्यमंत्री तक नहीं पहुँचने दे रहे हैं. बस इतना कहना ही उनके लिए काल बन गया.
सुखेंदु शेखर को पुलिस का समन मिलना और शांतनु सेन को पार्टी प्रवक्ता पद से हटाया जाना ये बताता है कि सरकार किस तानाशाहीपूर्ण तरीके से मामले को दबा रही है. पर पार्टी कार्यकर्ताओं में इस तरह के रवैये का विरोध होना स्वाभाविक है. पार्टी कार्यकर्ता जानते हैं कि शीर्ष नेतृत्व की हरी झंडी के बिना पुलिस सत्तारूढ़ पार्टी के किसी वरिष्ठ सांसद को एक ट्वीट के लिए समन नहीं भेज सकती थी.
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि पार्टी मुखपत्र के संपादक और राजनीतिक दल का रवैया परस्पर विरोधाभासी है. यह सत्तारूढ़ पार्टी किस गर्त में ले जाएगी इसे समझना होगा. 15 अगस्त को मुखपत्र ‘जागो बांग्ला’ के अंक में जहां महिलाओं की ओर से आधी रात को हुए आंदोलन और प्रदर्शन की निंदा की गई थी वहीं उसके संपादक निजी हैसियत से ख़ुद तीन घंटे तक धरने पर बैठे थे.
3-भारतीय जनता पार्टी ने भी विरोध का तरीका बदला है
भारतीय जनता पार्टी ने भी कोलकाता रेप और हत्याकांड में पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए जो रणनीति अपनाई है वह अब तक अपनाए जा रहे तरीकों से जुदा है. संदेशखाली और विधानसभा चुनावों के बाद हुई हिंसा का विरोध, भारतीय जनता पार्टी ने बंगाल के लोकल नेतृत्व पर केंद्रीय नेतृत्व को थोपने का काम किया . पर इस बार केंद्र चुप है, बंगाल के बाहर के बीजेपी के नेता भी चुप हैं. कोलकाता कांड के विरोध का जिम्मा बंगाल के नेताओं के जिम्मे ही छोड़ दिया गया है.शुभेंदु अधिकारी , लॉकेट चटर्जी आदि ने मोर्चा संभाला हुआ है. कोलकाता पुलिस ने आरजी कर अस्पताल के डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के संबंध में अफवाह फैलाने के मामले में दो डॉक्टरों- डॉ. कुणाल सरकार और डॉ. सुबर्नो गोस्वामी को नोटिस जारी किया है. पुलिस की ओर से बीजेपी नेता लॉकेट चटर्जी को भी नोटिस जारी किया गया है. जाहिर है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व यह समझ चुका है कि बंगाल में बाहर का नेतृत्व स्वीकार नहीं किया जाएगा. इसलिए इस बार प्रदेश बीजेपी के नेताओं को खुला हैंड दे दिया गया है. दिल्ली के नेताओं ने पीड़ित परिवार से मिलने आदि के लिए कोलकाता जाने की कोशिश नहीं की है.
5- ममता के मंत्रियों के जहर भरे बोल
कोलकाता रेप केस पर जिस तरह की बयानबाजी टीएमसी नेता कर रहे हैं वह शर्मनाक है. एक महिला मुख्यमंत्री के मंत्रिमंडल में शामिल लोग इस तरह का बयान देंगे वो आम बंगाली मानुष बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. उत्तर बंगाल विकास मंत्री उदयन गुहा ने कहते हैं कि जो लोग सीएम ममता बनर्जी पर उंगली उठा रहे हैं, उन्हें पहचानने और उनकी उंगलियां तोड़ने की जरूरत है. उन्होंने आगे कहा: मैंने कभी जींस और छोटे बाल वाली महिलाओं को अवैध शराब या जुए के खिलाफ आंदोलन करते नहीं देखा. ग्रामीण महिलाएं यही करती हैं… ये महिलाएं टेलीविजन पर दिखने और अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने के लिए आंदोलन कर रही हैं.
टीएमसी सांसद अरूप चक्रवर्ती ने प्रदर्शनकारियों को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर डॉक्टर मरीजों का इलाज करने के बजाय और विरोध प्रदर्शन की आड़ में अपने बॉयफ्रेंड के साथ घूमेंगे या घर चले जाएंगे और मरीज मर जाएंगे, तो सार्वजनिक आक्रोश होगा. अगर अस्पतालों का घेराव होता है तो उन्हें बचाने के लिए हमारे पास नहीं आना चाहिए.
सांसद कल्याण बनर्जी कहते हैं कि कुछ लोग सोचते हैं कि बांग्लादेश की तरह, गाने गाकर और स्पेनिश गिटार बजाकर, वे ममता बनर्जी सरकार को गिराने में सक्षम होंगे. लेकिन हमारी नेता ममता बनर्जी ने पुलिस को गोली चलाने की इजाजत नहीं दी.
जाहिर है कि इस तरह की बयानबाजी के चलते राज्य में टीएमसी नेताओं के खिलाफ माहौल तैयार हो रहा है.
4-कांग्रेस का भी इस मुद्दे पर नहीं मिलने वाला है साथ
ममता सरकार को इस मुद्दे पर अपने सहयोगी दल कांग्रेस का भी साथ मिलता नहीं दिख रहा है. हालांकि कांग्रेस और टीएमसी का साथ केवल इंडिया गठबंधन के सदस्य के रूप में ही है. लोकसभा चुनावों में दोनों ही दलों ने एक दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी खड़े किए थे. फिर भी बहुत से मुद्दों पर ममता सरकार को कांग्रेस का साथ मिलता रहा है. पर कोलकाता रेप और मर्डर केस में कांग्रेस ने भी अपना स्टैंड क्लियर कर दिया है.राहुल गांधी ने लिखा, कोलकाता में जूनियर डॉक्टर के साथ हुए रेप और मर्डर की वीभत्स घटना से पूरा देश स्तब्ध है. उसके साथ हुए क्रूर और अमानवीय कृत्य की परत दर परत जिस तरह खुलकर सामने आ रही है, उससे डॉक्टर्स कम्युनिटी और महिलाओं के बीच असुरक्षा का माहौल है.
यही नहीं राहुल गांधी ने कई सवाल भी खड़े किए हैं जिसे ममता सरकार के खिलाफ स्पष्ट हमले के तौर पर ही देखा जा रहा है.राहुल लिखते हैं कि पीड़िता को न्याय दिलाने की जगह आरोपियों को बचाने की कोशिश, अस्पताल और स्थानीय प्रशासन पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है. इस घटना ने सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अगर मेडिकल कॉलेज जैसी जगह पर डॉक्टर्स सेफ़ नहीं हैं तो किस भरोसे अभिभावक अपनी बेटियों को पढ़ने बाहर भेजें?
इसके पहले, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी ममता सरकार को घेरते हुए एक्स पर लिखा था. अधीर ने लिखा था कि महिला जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना, सीएम ममता द्वारा संचालित पश्चिम बंगाल में क़ानून और व्यवस्था की स्थिति में गिरावट की पुष्टि करती है.उन्होंने आगे लिखा, बंगाल की छवि ख़राब हो रही है और एक दिन लोग कहेंगे कि कोलकाता बलात्कार की राजधानी बन गया है. मैं उन्हें सुझाव देना चाहता हूँ कि वे कम बोलें और थोड़ा काम करें. अब केवल उपदेश देने वाले नहीं, बल्कि काम करने वाले मुख्यमंत्री की ज़रूरत है.