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आपातकाल : भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय

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डॉ. मोहन यादव
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 25 जून 1975 को लागू किया आपातकाल एक काले अध्याय के रूप में जुड गया है। इस दिन भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने आपातकाल के प्रावधानों के तहत हजारों विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था। भारतीय लोकतंत्र में कांग्रेस पार्टी आपातकाल के कलंक से कभी मुक्त नहीं हो सकती।

कांग्रेस शासन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए विपक्षी दलों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के कारण देश की कानून व्यवस्था की स्थिति खराब होने का बहाना बनाते हुए इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल लगाया था। इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 महीने की अवधि के लिए हर छह महीने में आपातकाल लगाने के लिए कहा था।

आपातकाल के दौरान, इंदिरा गांधी ने खुद को सर्वशक्तिमान के रूप में स्थापित किया था। उन्होंने पार्टी के कुछ करीबी सदस्यों और अपने छोटे बेटे संजय गांधी के परामर्श से कई सारे निर्णय लिए जिसका भारत के सामाजिक तानेबाने पर दूरगामी प्रभाव पड़ा।
आपातकाल को अक्सर स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक काला दौर माना जाता है। इस अवधि में बेलगाम सरकारी कैद, असहमति को दबाना और नागरिक स्वतंत्रता पर सरकारी दमन की घटनाएं हुईं। मानवाधिकारों के लगातार उल्लंघन और प्रेस पर दमनकारी हद तक सेंसरशिप की खबरें आती रहीं। आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के निलंबन को पर्यवेक्षकों और संवैधानिक विशेषज्ञों द्वारा चिंता के साथ याद किया जाता है।

दरअसल आपातकाल की बुनियाद 1967 के गोलकनाथ मामले से ही पड़ गई थी। गोलकनाथ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि यदि परिवर्तन मौलिक अधिकारों जैसे बुनियादी मुद्दों को प्रभावित करते हैं तो संसद द्वारा संविधान में संशोधन नहीं किया जा सकता है। इसके बाद इस निर्णय को निष्प्रभावी करने के लिए, सरकार ने 1971 में 24वाँ संशोधन पारित किया। सर्वोच्च न्यायालय में सरकार द्वारा तत्कालीन राजकुमारों को दिए गए प्रिवी पर्स के मामले में भी इंदिरा गांधी की किरकिरी हुई थी।

न्यायपालिका-कार्यपालिका की यह लड़ाई ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले में जारी रही, जहां 24वें संशोधन पर सवाल उठाया गया था। 7-6 के मामूली बहुमत के साथ, सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने संसद की संशोधन शक्ति को यह कहते हुए प्रतिबंधित कर दिया कि इसका उपयोग संविधान के "मूल ढांचे" को बदलने के लिए नहीं किया जा सकता है। इंदिरा गांधी को यह नागवार लगा और उन्होंने केशवानंद भारती मामले में अल्पमत में शामिल लोगों में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश ए.एन. रे को भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाया।

न्यायपालिका को नियंत्रित करने की इंदिरा गांधी की प्रवृत्ति की प्रेस और जयप्रकाश नारायण ("जेपी") जैसे राजनीतिक विरोधियों ने कड़ी आलोचना की। जयप्रकाश नारायण ने देश में घूम-घूम कर इंदिरा सरकार के खिलाफ रैलियां की और कुछ राज्यों में छात्रों ने आंदोलन भी किये।

इस बीच, सार्वजनिक नेताओं पर हत्या के प्रयास हुए और साथ ही तत्कालीन केन्द्रीय रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा की बम से हत्या कर दी गई। इन सभी बातों से पूरे देश में कानून और व्यवस्था की समस्या बढ़ने का संकेत मिलने लगा, जिसके बारे में इंदिरा गांधी के सलाहकारों ने उन्हें महीनों तक चेतावनी दी थी। इसके बाद मामले को हाथ से निकलता देख इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाने का फैसला किया। कांग्रेस पार्टी का यह फैसला देश की लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध हुआ और इसे एक काला दिन के रूप में याद किया जाने लगा।

18 वीं लोकसभा के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल को लेकर कांग्रेस पर तीखा हमला किया और आपातकाल की घोषणा को भारत के लोकतंत्र पर एक "काला धब्बा" बताया। 18वीं लोकसभा के पहले सत्र से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा, "कल 25 जून है। 25 जून को भारत के लोकतंत्र पर लगे उस कलंक के 50 साल हो रहे हैं। भारत की नई पीढ़ी कभी नहीं भूलेगी कि भारत के संविधान को पूरी तरह से नकार दिया गया था, संविधान के हर हिस्से की धज्जियां उड़ा दी गई थीं, देश को जेलखाना बना दिया गया और लोकतंत्र को पूरी तरह से दबा दिया गया था।" उन्होंने कहा, "अपने संविधान की रक्षा करते हुए, भारत के लोकतंत्र की, लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा करते हुए, देशवासी यह संकल्प लेंगे कि भारत में फिर कोई ऐसा करने की हिम्मत नहीं करेगा जो 50 साल पहले किया गया था। हम एक जीवंत लोकतंत्र का संकल्प लेंगे। हम भारत के संविधान के निर्देशों के अनुसार आम लोगों के सपनों को पूरा करने का संकल्प लेंगे।"

18वीं लोकसभा के चुनाव की घोषणा होने के बाद कांग्रेस पार्टी के प्रमुख मुद्दों में से एक संविधान बचाने का मुद्दा था। जिसे पार्टी आज भी जोर शोर से उठा रही है। विडंबना ये है कि जिस कांग्रेस ने संविधान में सैकड़ों संशोधन किए, उसके मूल ढांचे में संशोधन किए वह पार्टी आज संविधान बचाने की बात कर रही है। जिस भारतीय जनता पार्टी की पूरी राजनीति संविधान में दिए गए प्रावधान के तहत समाज के गरीबों, महिलाओं, वंचितों और दलितों की उत्थान के लिए है आज उस बीजेपी पर संविधान की दुर्दशा करने वाली कांग्रेस पार्टी आरोप लगा रही है।

देश के महानायक प्रधानमंत्री  मोदी ने अपने संबोधन में कई बार इस बात का जिक्र किया है कि भारत की आत्मा बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के संविधान में बसती है और इसे संसद भी नहीं बदल सकता। इसके बाद भी कांग्रेस पार्टी द्वारा गलत अवधारणा फैला कर जनता को बरगलाने का काम किया जा रहा है। लोकसभा चुनावों में जनता कांग्रेस और उनके साथियों के झांसे में आ गई थी, लेकिन विपक्षी पार्टियों की काठ की यह हांडी बार बार नहीं चढ़ेगी।
(लेखक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री है)

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