अधिकारियों की मिलीभगत से बाहरी कंपनी व एजेंसियां उड़ा रही नियम कायदों की धज्जियां
साजिश के तहत स्थानीय कंपनी और एजेंसी को काम देने में प्रबंधन पैदा कर रहा अवरोध
भिलाई । भिलाई इस्पात संयंत्र में ठेका मजदूरों का शोषण चरम पर है। यहां बड़े बजट के ज्यादातर बाहर की ठेका कंपनी और एजेंसियां कर रही है। अधिकारियों की मिली भगत से इन बाहरी कंपनी और एजेंसियों के द्वारा मजदूरों के लिए लागू नियम व कायदों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। साजिश के तहत लंबे समय से काम करने वाले स्थानीय कंपनी और एजेंसी को नया काम देने में प्रबंधन अवरोध पैदा कर रहा है। लगातार विभिन्न माध्यमों से ध्यानाकर्षण कराने के बावजूद संयंत्र प्रबंधन की उदासीनता समझ से परे है।
यह बातें स्टील मेटल एण्ड इंजीनियरिंग वर्कर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एचएस मिश्रा ने जारी बयान में कहा है। उन्होंने बताया कि भिलाई इस्पात संयंत्र में ठेका मजदूरों को उनका हक नहीं मिल पा रहा है। सेल के सभी यूनिट में लगभग नियम कानून का पालन होता है और मजदूरों को सुविधाएं दी जाती है। लेकिन भिलाई इस्पात संयंत्र में मजदूरों के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा बनाए गए नियम का पालन अधिकारियों की उदासीनता की वजह से नहीं हो पा रहा है। भिलाई इस्पात संयंत्र के उत्पादन और निष्पादन में अपना खून पसीना एक करने वाले ज्यादातर ठेका मजदूरों को एम्प्लॉयमेंट कार्ड, वेतन पर्ची, परिचय पत्र और हाजिरी कार्ड नहीं दिया जा रहा है। साइट के अधिकारी व ऑपरेटिंग अथॉरिटी कुछ तो बहुत ही अच्छे और इमानदार हैं, लेकिन अधिकांश अधिकारी और ऑपरेटिंग अथॉरिटी काम करने वाले ठेका कंपनी व एजेंसियों से मिलकर भिलाई इस्पात संयंत्र को अंदर ही अंदर खोखला करने में लगे हुए हैं।
श्री मिश्रा ने चौंकाने वाला खुलासा करते हुए बताया कि संयंत्र प्रबंधन से जुड़े अधिकारी साजिश के तहत स्थानीय कंपनी और एजेंसी को काम देने में अवरोध उत्पन्न कर रहे हैं। इसके लिए अधिकारियों ने ऐसा नियम बनाया है जिसमें कईं तरह की विसंगति होने से स्थानीय कंपनी और एजेंसियों को काम लेने में सफलता नहीं मिल पा रही है। दूसरी ओर बाहर की कंपनी और एजेंसी फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत कर यहां आसानी से काम ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि जो कंपनियां दो करोड़, तीन करोड़ या पांच करोड़ रुपए का काम लेना चाहती है तो उसे अधिकारियों के बनाए नियमों के अनुसार 50 लाख से एक करोड़ के काम पूर्व में कर चुके होने का तजुर्बा दिखाना होता है। इस नियम के चलते 30 से 40 साल से भिलाई इस्पात संयंत्र में काम कर रहे स्थानीय कंपनी और एजेंसी को मौका नहीं मिल पा रहा है। स्थानीय कंपनी और एजेंसी को अगर काम मिलता भी है तो उन्हें 500 से 600 रुपए लेबर सप्लाई का रेट मिल रहा है। जबकि उसी काम को बाहर की तथाकथित कंपनी और एजेंसियों को फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत करने पर लेबर सप्लाई का रेट 1200, 1500, 1800 तथा 2100 रुपए तक दिया जा रहा है।
श्री मिश्रा ने बताया कि भिलाई इस्पात संयंत्र में बाहर से आने वाले अधिकारी अपने मूल निवास वाले प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले कंपनी और एजेंसी को बुलाकर काम देने में भी पीछे नहीं हैं। जिसके चलते लंबे समय से काम करने वाले स्थानीय कंपनी और एजेंसी को काम मिलना मुश्किल हो रहा है। बाहर की कुछ कंपनियां तो ऐसी भी हैं, जो कम रेट में काम लेकर कुछ दिन काम करने के बाद कर्मचारियों को न बोनस और न ही एडब्ल्यूए देते हैं। जबकि घाटा होने की स्थिति में भी कुल वेतन का 8.53 प्रतिशत राशि बोनस के रूप में दिए जाने का प्रावधान है। लेकिन 1500, 2000, 3000 और अधिकतम 4000 रुपए बोनस दिया जा रहा है। कुछ कंपनियां तो ऐसी भी हैं जो मजदूरों को एक रुपए तक का बोनस नहीं दे रही है। जब मजदूर इस बात की शिकायत करता है तो उसे काम में बचत नहीं होने का टका सा जवाब दिया जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब बचत नहीं होता तो फिर बाहर से आकर काम किस मकसद से किया जा रहा है।
इसी कड़ी में भिलाई श्रमिक सभा के कार्यवाहक अध्यक्ष प्रेम सिंह चंदेल ने कहा कि भिलाई इस्पात संयंत्र के अधिकारियों को सिर्फ प्रोडक्शन और प्रोग्रेस से मतलब है। लेकिन उनके आंख के सामने मजदूरों का शोषण हो रहा है, आखिर इसका जिम्मेदार कौन है। ऐसे भी ठेकेदार हैं जो मेन पावर के हिसाब से बीएसपी से पैसा लेते हैं, लेकिन उतना मेन पावर देते नहीं, फिर भी उनका पूरा बिल बनता है और वह पास भी हो जाता है। इसी तरह 20, 22 और 26 दिन कर्मचारी काम करते हैं जिसमें से कुछ ही का पीएफ कटौती होता है। ज्यादातर ठेका कर्मचारियों के पीएफ कटौती नहीं होने की जिम्मेदारी से संयंत्र प्रबंधन बच नहीं सकता है। अनेक ठेकेदार कर्मचारियों को 12 हजार रुपए वेतन देने के बाद उनसे लगभग 4 हजार रुपए वापस लिया जाता है। इसके लिए ठेका कंपनी और एजेंसियों के द्वारा कर्मचारियों का बैंक खाता और एटीएम कार्ड तक को अपने पास रखा जाता है। श्री मिश्रा ने बताया कि अनेकों बार सभी यूनियन नेताओं ने पत्र व अखबारों के माध्यम से ठेका मजदूरों पर हो रहे शोषण को रोकने प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों का ध्यानाकर्षण कराया है। लेकिन अधिकारियों के ध्यान नहीं दिए जाने से मजदूरों में पनप रहा आक्रोश कभी भी विस्फोटक रुप धारण कर सकता है।
एचएमएस यूनियन से संबद्ध भिलाई श्रमिक सभा के महामंत्री देवेंद्र कुमार सिंह ने सुझाव देते हुए कहा है कि भिलाई इस्पात संयंत्र में बाहर की कंपनी और एजेंसियों को काम नहीं देना चाहिए। बरसों से यहां की श्रमिक संस्कृति में रचे – बसे स्थानीय कंपनी और एजेंसी को काम देने से ही मजदूरों के शोषण पर रोक लगाई जा सकती है। भिलाई इस्पात संयंत्र के उत्पादन और उन्नति में अहम भूमिका निभाने वाले स्थानीय कंपनी और एजेंसी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। वहीं काम के टेंडर में ही ऐसा कंडीशन प्रबंधन को रखना चाहिए कि नियम और कानून के अनुसार मजदूरों को भुगतान व सुविधाएं नहीं दिए जाने की स्थिति में काम बंद करने के साथ ही बिल भुगतान रोकने का प्रावधान हो।