अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव फिर से बढ़ गया है, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना तय माना जा रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीनी उत्पादों पर अतिरिक्त 10% शुल्क लगाने की घोषणा की है, जिससे कुल शुल्क 20 फीसदी हो जाने वाला है. इसके जवाब में चीन भी प्रतिशोध लेगा, अर्थात रेसिप्रोकल टैक्स लगाएगा. उसने अमेरिका के कृषि उत्पादों पर रेसिप्रोकल टैक्स लगाने के कदम उठाने की योजना बनाई है. यदि ट्रंप चीन के मामले में नरम पड़ते हैं तो फिर पूरी दुनिया के सामने यह एक मिसाल बनेगा और सबको यह लगने लगेगा कि ट्रंप के साथ सौदेबाजी की जा सकती है.
पिछले सप्ताह, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन पर आरोप लगाया कि वह फेंटानिल (एक घातक मादक पदार्थ) की अमेरिका में आपूर्ति को रोकने में असफल रहा है, और इसी आधार पर उन्होंने चीनी आयात पर अतिरिक्त 10 फीसदी शुल्क लगाने की धमकी दी. इस कदम से चीनी उत्पादों पर कुल शुल्क 20 फीसदी तक पहुंच जाएगा. चीन ने इस आरोप को “ब्लैकमेल” कहकर खारिज किया कर दिया और कहा कि वह भी उपयुक्त कदम उठाने की योजना बना रहा है.
अमेरिका के लिए चीन नहीं तो क्या?
चीन की सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, बीजिंग अमेरिका के कृषि और खाद्य उत्पादों पर नए शुल्क लगाने की तैयारी कर रहा है. यह कदम अमेरिकी किसानों के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है, क्योंकि चीन अमेरिकी कृषि उत्पादों का एक प्रमुख बाजार है. 2024 में, चीन ने अमेरिकी कृषि उत्पादों का 2,19,375 करोड़ रुपये मूल्य का आयात किया था. यदि चीन इन उत्पादों पर शुल्क बढ़ाता है, तो अमेरिकी किसानों को नए बाजारों की तलाश करनी पड़ेगी, जिससे उनकी आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
अमेरिका को हो सकती है मुसीबत
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के प्रतिशोधी कदम अमेरिका के लिए गले की फांस बन सकते हैं. ट्रंप जब पहली बार राष्ट्रपति बने थे, तब भी इसी तरह के हालात बने थे और ट्रेड वार पूरे चरम पर पहुंच गया था. तब भी वैश्विक बाजार बुरी तरह प्रभावित हुए थे. बीजिंग ने संकेत दिया है कि वह बातचीत के जरिए रास्ता तलाशना चाहता है, लेकिन यदि आवश्यक हुआ तो वह अमेरिकी बिजनसों को टारगेट करने और विभिन्न अमेरिकी निर्यातों पर नए शुल्क लगाने जैसे कदम उठाने से गुरेज नहीं करेगा.
इस व्यापारिक तनाव के बीच वैश्विक निवेशक और बाजार अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं. यदि यह तनाव बढ़ता है, तो यह वैश्विक जीडीपी वृद्धि, मुद्रास्फीति और ब्याज दरों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. इसलिए, दोनों देशों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे बातचीत के जरिए समाधान खोजें और ग्लोबल इकॉनमी की स्टेबिलिटी का ध्यान रखें.