केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में आयकर विधेयक, 2025 पेश किया. बिल पेश करने के बाद उन्होंने इसे सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने का प्रस्ताव रखा. फिर इसे सेलेक्ट कमेटी या चयन समिति के पास भेज दिया गया. संसदीय चयन समिति क्या होती है. क्या हर बिल के लिए चुनी जाती है या पहले से तय होती है. इसका क्या काम होता है. वैसे अमेरिका और ब्रिटेन की संसद में सेलेक्ट कमेटी होती है, जो खास विशेषाधिकार हासिल कमेटी होती है.
इनकम टैक्स संबंधी जो बिल सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया है. वो अपनी रिपोर्ट संसद के अगले सत्र के पहले दिन सौंप सकती है.आप कह सकते हैं कि किस जटिल या महत्वपूर्ण बिल पर विचार-विमर्श और समीक्षा के लिए ऐसी खास कमेटी की जरूरत होती है. इसका गठन लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति द्वारा किया जाता है.
– भारतीय संसद में संसदीय सेलेक्ट कमेटी (Parliamentary Select Committee) एक विशेष समिति होती है जो किसी विशेष विधेयक (बिल) या मुद्दे की जांच और विस्तार से विचार-विमर्श के लिए गठित की जाती है. यह समिति संसद के सदस्यों से बनी होती है. इसका मुख्य उद्देश्य किसी विशेष मामले पर गहन अध्ययन करना और उस पर रिपोर्ट तैयार करना होता है.
जब कोई महत्वपूर्ण विधेयक संसद में पेश किया जाता है, तो उसे और अधिक विस्तृत विचार-विमर्श के लिए सेलेक्ट कमेटी को भेजा जा सकता है. समिति विधेयक के प्रावधानों की जांच करती है. संभावित संशोधनों की सिफारिश कर सकती है. कभी-कभी किसी विशेष मुद्दे या समस्या पर गहन अध्ययन करने के लिए भी सेलेक्ट कमेटी का गठन किया जाता है.
समिति अपनी जांच के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार करती है, जिसमें उसके निष्कर्ष और सिफारिशें शामिल होती हैं. यह रिपोर्ट संसद में पेश की जाती है. इस पर चर्चा की जा सकती है.
यह समिति विधेयकों में संभावित त्रुटियों या कमियों को दूर करने में मदद करती है।
यह संसदीय प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाती है. संसदीय सेलेक्ट कमेटी भारतीय संसदीय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो विधायी प्रक्रिया को और अधिक मजबूत और प्रभावी बनाने में मदद करती है.
– सेलेक्ट कमेटी का गठन संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) द्वारा किया जा सकता है. ये गठन स्पीकर या राज्यसभा में सभापति द्वारा किया जाता है. समिति के सदस्य संसद के विभिन्न दलों के प्रतिनिधि होते हैं, जिन्हें उनके दलों द्वारा नामित किया जाता है. सदस्यों की संख्या और संरचना सदन द्वारा तय की जाती है. सदस्यों का चयन आमतौर पर दलों के बीच आपसी सहमति से होता है.
– समिति का अध्यक्ष भी संसद सदस्यों में चुना जाता है. आमतौर पर सेलेक्ट कमेटी के सभी सदस्य मिलकर उसका चुनाव करते हैं.
– संसद के किसी सदस्य द्वारा एक प्रस्ताव पेश किया जाता है कि किसी विशेष विधेयक या मुद्दे पर विचार करने के लिए एक सेलेक्ट कमेटी का गठन किया जाए. यह प्रस्ताव सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में चर्चा के लिए रखा जाता है. यदि सदन इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है, तो कमेटी का गठन होता है.
– सेलेक्ट कमेटी का कार्यकाल उसके गठन के उद्देश्य पर निर्भर करता है. एक बार जब कमेटी अपना कार्य पूरा कर लेती है. अपनी रिपोर्ट सदन में पेश कर देती है, तो उसका कार्यकाल समाप्त हो जाता है. सेलेक्ट कमेटी का गठन अस्थायी होता है और यह केवल उस विशेष विधेयक या मुद्दे के लिए किया जाता है, जिसके लिए इसे बनाया गया है.
– नहीं, हर बिल (विधेयक) पर समीक्षा करने के लिए सेलेक्ट कमेटी (Select Committee) का गठन नहीं किया जाता. सेलेक्ट कमेटी का गठन केवल विशेष परिस्थितियों में किया जाता है.
– लोकसभा के नियमों के अनुसार, एक सेलेक्ट कमेटी में आमतौर पर 30 सदस्य हो सकते हैं. जिसमें अध्यक्ष शामिल होता है. राज्यसभा में यह संख्या 25 सदस्यों की हो सकती है. इसें अध्यक्ष शामिल होता है. हालाकि ये संख्या लचीली हो सकती है और स्थिति के अनुसार बदल सकती है.
– सेलेक्ट कमेटी संसदीय प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली भूमिका निभाती है. हालांकि इसकी शक्तियां सीमित और विशिष्ट होती हैं. इसके निर्णय अंतिम नहीं होते हैं.
– सेलेक्ट कमेटी को विधेयक के प्रावधानों की गहन जांच करने और उसमें संशोधन की सिफारिश करने का अधिकार होता है.
– यह विधेयक के हर पहलू पर विस्तृत विचार-विमर्श कर सकती है.
– कमेटी विधेयक से संबंधित विषयों पर विशेषज्ञों, हितधारकों और जनता से सलाह ले सकती है.
– यह जनसुनवाई आयोजित कर सकती है और लोगों की राय जान सकती है.
– यदि कमेटी की रिपोर्ट में महत्वपूर्ण संशोधनों की सिफारिश की जाती है, तो संसद उन पर विचार कर सकती है.
– सेलेक्ट कमेटी को सरकारी विभागों, मंत्रालयों और अन्य संस्थानों से जानकारी और दस्तावेज़ मांगने का अधिकार होता है.
– यह कमेटी सरकारी अधिकारियों को बुलाकर उनसे सवाल पूछ सकती है.