Home अंतर्राष्ट्रीय सेकुलरिज्म से बांग्लादेश में ऐतराज, मोहम्मद यूनुस सरकार बोली- यहां 90% मुसलमान

सेकुलरिज्म से बांग्लादेश में ऐतराज, मोहम्मद यूनुस सरकार बोली- यहां 90% मुसलमान

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ढाका

शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश की सत्ता संभाल रही अंतरिम सरकार लगातार कट्टरपंथ की ओर झुकाव दिखा रही है। देश की स्थापना करने वाले शेख मुजीबुर रहमान के अपमान से लेकर बंगाली राष्ट्रवाद तक से अब किनारा किया जा रहा है और पाकिस्तान की विचारधारा की तरफ झुकाव बढ़ा है। इस बीच बांग्लादेश सरकार ने कहा है कि देश में सेकुलरिज्म की ही कोई जरूरत नहीं है। बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने ऐसा कहा है। बांग्लादेशी अखबार Prothom Alo के अनुसार हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान असदुज्जमां ने यह बात कही। उन्होंने हाई कोर्ट में देश के संविधान में 15वें संशोधन के खिलाफ दायर अर्जी पर सुनवाई के दौरान ऐसा कहा।

यह संविधान संशोधन शेख हसीना सरकार के दौर में 3 जुलाई, 2011 को हुआ था। इसी संशोधन के तहत देश को सेकुलर घोषित किया गया था और शेख मुजीबुर रहमान को राष्ट्रपिता माना गया था। महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने को भी इसके तहत मंजूरी मिली थी। एक तरह से उस संविधान संशोधन को बांग्लादेश की राजनीति में बड़े बदलाव के तौर पर देखा जाता है। अब उसे ही हटाने की तैयारी है। बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल ने अदालत में कहा कि यहां तो 90 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। फिर सेकुलरिज्म जैसी चीज की यहां क्या जरूरत है। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति संविधान के अनुच्छेद VIII में सेकुलरिज्म को रखना ठीक नहीं है।

उन्होंने कहा कि पहले तो अल्लाह पर भरोसा रखने की बात कही जाती थी। अटॉर्नी जनरल ने मोहम्मद यूनुस सरकार से अपील की है कि इस संविधान संशोधन को खत्म किया जाए और पहले वाले नियम ही लागू किए जाएं। केस की सुनवाई के दौरान बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल ने कहा कि हमारे देश का आधिकारिक धर्म तो इस्लाम ही है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यदि देश में हिंदू समेत तमाम अल्पसंख्यक रहते हैं तो उन्हें भी अधिकार है कि वे अपने तरीके से धर्म का पालन कर सकें और पूजा-पाठ करें। हालात यह हैं कि नई सरकार अब संविधान में बंगाली राष्ट्रवाद को भी हटाने की बात कर रही है।

बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल ने इसे लेकर कहा कि संविधान के आर्टिकल 9 में बंगाली राष्ट्रवाद की बात कही गई है, लेकिन यह गलत है। ऐसा करना तो उन दूसरी भाषाओं के लोगों का अपमान है, जिन्होंने स्वतंत्रता के संघर्ष में हिस्सा लिया था। इसलिए इसे हटा देना चाहिए। माना जा रहा है कि बंगाली राष्ट्रवाद की बजाय इस्लाम के आधार पर राष्ट्र की अवधारणा की ओर जाने का विचार बांग्लादेश की नई सरकार का है।

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