Home अंतर्राष्ट्रीय आर्कटिक में बर्फ का सीना चीरेंगे ‘मेड इन इंडिया’ आइसब्रेकर, रूस ने...

आर्कटिक में बर्फ का सीना चीरेंगे ‘मेड इन इंडिया’ आइसब्रेकर, रूस ने चीन को दिया झटका

8

मास्‍को
यूक्रेन युद्ध के बीच रूस की चीन पर निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है। इस बीच रूस को भारत से भी जमकर मदद मिली है। भारत ने रूस से बहुत बड़े पैमाने पर तेल खरीदा है। वह भी त‍ब जब रूस पर पश्चिमी देशों ने कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। इस बीच रूस ने भारत को बड़ी खुशखबरी दी है। रूस ने अत्‍याधुनिक गैर परमाणु आइसब्रेकर शिप निर्माण के लिए भारत को चुना है। रूस ने यह फैसला ऐसे समय पर लिया है जब राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन चाहते हैं कि आर्कट‍िक क्षेत्र में नादर्न सी रूट का विकास किया जाए और पश्चिमी देशों के लगाए हुए प्रतिबंधों को मात दी जाए। इस समुद्री रास्‍ते के लिए भी रूस ने भारत को ऑफर दिया है।

रूस के इस ऑफर से न केवल दोनों देशों के बीच रिश्‍तों में मजबूती आएगी बल्कि इससे भारत आर्कटिक क्षेत्र में बड़ी ताकत बनकर उभरेगा। भारत सरकार दो जहाज बनाने वाली कंपनियों के साथ बातचीत कर रही है ताकि गैर परमाणु आइसब्रेकर को तैयार किया जा सके। इस पूरे सौदे की कीमत 6000 करोड़ रुपये होगी। इस पूरे सौदे को रूस की सरकारी परमाणु ऊर्जा कंपनी रोस्‍टोम का भी साथ म‍िल रहा है। रूसी कंपनी अच्‍छे माहौल वाली और क्षमता से लैस भारतीय कंपनी की तलाश कर रही है। वह भी तब जब अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखे हैं।

नादर्न सी रूट से क्‍या होगा फायदा ?

यूरेशिया टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर 2023 में रूस ने खुलासा किया था कि उसने भारत को गैर परमाणु आइसब्रेकर बनाने का प्रस्‍ताव दिया है। इनका संयुक्‍त उत्‍पादन किया जाना है। दरअसल, रूस चाहता है कि जहाजों के जरिए होने वाले वैश्विक व्‍यापार के लिए नादर्न सी रूट को विकसित किया जाए जो एक वैकल्पिक रास्‍ता होगा। इससे स्‍वेज नहर की तुलना में उत्‍तरी यूरोप और पूर्वी एशिया के देशों को ज्‍यादा जल्‍दी से सामान पहुंचाया जा सकेगा। रूस का लक्ष्‍य है कि इस रास्‍ते से कम से कम 15 करोड़ टन कच्‍चा तेल, एलएनजी, कोयला और अन्‍य सामान साल 2030 तक हर साल पहुंचाए जाएं।

रूस चाहता है कि इसके लिए कम से कम 50 आइसब्रेकर और बर्फ में चलने वाले जहाज इस रास्‍ते में तैनात किए जाएं। साथ ही नए बंदरगाहों, टर्मिनल और आपातकालीन जहाज बनाए जाएं। आर्कटिक का समुद्री इलाका 6 महीने बर्फ में ढंका रहता है। यही वजह है कि आइसब्रेकर की आगे बहुत जरूरत पड़ेगी। पुतिन और पीएम मोदी के बीच मुलाकात में जहाजों के निर्माण को लेकर सहमति बनी थी। असल में अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से यूरोपीय शिपयार्ड रूस के लिए जहाज नहीं बना पा रहे हैं। वहीं चीन, दक्षिण कोरिया और जापान के शिपयार्ड कम से कम साल 2028 तक के लिए बुक हैं।

चीन की चाल को मात देगा भारत

इसी वजह से रूस को अब विकल्‍प के रूप में भारत की मदद लेनी पड़ रही है जो उसका भरोसेमंद पार्टनर है। वहीं विश्‍लेषकों का कहना है कि रूस भारत के साथ दोस्‍ती बढ़ाकर चीन को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस बुरी तरह से चीन पर निर्भर हो गया है। चीन चाहता है कि नादर्न सी रूट पर उसकी पकड़ बढ़े और वह रूस के साथ दोस्‍ती बढ़ा रहा है। वह इसे बीआरआई का हिस्‍सा बता रहा है। वहीं यह पूरा इलाका तेल और गैस से भरा हुआ है जिससे आने वाले समय में व्‍यापार बहुत ज्‍यादा बढ़ने की संभावना है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here