Home उत्तर प्रदेश आरोपित को नहीं मालूम कि शिकायतकर्ता अनु.जाति का है, तो नहीं लगेगा...

आरोपित को नहीं मालूम कि शिकायतकर्ता अनु.जाति का है, तो नहीं लगेगा एससी-एसटी एक्ट : हाई कोर्ट

48
प्रयागराज
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि आरोपित नहीं जानता कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति का है तो विवाद होने पर एससी-एसटी एक्ट लागू नहीं होगा। कोर्ट ने जालौन जिले में टवेरा कार की सामने से आल्टो कार में टक्कर मारना और गाली-गलौच, मार-पीट करने पर आईपीसी सहित एससी-एसटी एक्ट में दर्ज आपराधिक केस कार्यवाही रद्द कर दी है।
कोर्ट ने कहा कि विवेचना अधिकारी ने सतही तौर पर विवेचना की। किसी चश्मदीद गवाह का बयान नहीं लिया और यह पता करने की कोशिश नहीं की कि क्या घटना पर एससी-एसटी एक्ट का अपराध बनता भी है या नहीं और चार्जशीट दाखिल कर दी। किसी के चोटिल होने की रिपोर्ट नहीं है और पहचान परेड भी नहीं कराई गई। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाले से कहा कि जब आरोपित को मालूम ही नहीं था कि शिकायतकर्ता अनुसूचित जाति का है और अनजाने में अपमानित किया गया है तो एससी-एसटी एक्ट लागू नहीं होगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने नसीम खान, फहीम व पांच अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने 27 जून 19 को दाखिल चार्जशीट, संज्ञान आदेश व सम्मन रद्द कर दिया है। मालूम हो कि शिकायतकर्ता आल्टो कार चला रहा था। याची व अन्य आरोपित टवेरा कार चला रहे थे। पेट्रोल पम्प पर याची ने अपनी कार से ऑल्टो में टक्कर मारी और मार-पीट की। जिस पर एफआईआर दर्ज की गई थी।
ST/SC Act का दुरुपयोग चिंतनीय: इलाहाबाद हाई कोर्ट
देश में एससी-एसटी ऐक्ट के दुरुपयोग को लेकर अक्सर सवाल उठाए जाते हैं। ये सवाल यूँ ही नहीं उठाए जाते हैं, इसके ऐसे कई उदाहरण हैं कि फर्जी SC-ST के कारण कई लोगों की जिंदगी हमेशा के लिए तबाह हो गई। कई लोगों के जीवन के अनमोल वर्ष जेल में बीते और बाद में पता चला कि केस झूठा था। ऐसे ही एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया है और कठोर टिप्पणी की है।
एक मामले की सुनवाई करने के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) के दुरुपयोग को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की। इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक सरकारी कर्मचारी के इशारे पर एक पति-पत्नी के खिलाफ दर्ज एफआईआर और पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
जस्टिस प्रशांत कुमार ने कहा, “अगर उत्तर प्रदेश में इस प्रकार की गतिविधियों की अनुमति किसी और के द्वारा नहीं, बल्कि सरकारी कर्मचारी के द्वारा दी जाती है तो यह न्यायालय अपने कर्तव्य में असफल होगा। यहाँ भू-माफियाओं, राजस्व अधिकारियों और तत्कालीन एसएचओ की मिलीभगत है, जिसमें एक जोड़े को गलत तरीके से आपराधिक कार्यवाही में फंसाया गया है और उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर किया गया।”
याचिकाकर्ता अलका सेठी और उनके पति ध्रुव सेठी द्वारा दायर याचिका पर FIR रद्द करने का आदेश कोर्ट ने दे दिया। याचिकाकर्ताओं पर आरोप था कि सतपुड़ा में सड़क के खसरा नंबरों का लेखपाल निरीक्षण कर रहा था। इस दौरान अलका और उनके पति से लेखपाल का सामना हुआ। याचिका के अनुसार दोनों दंपत्ति ने लेखपाल को जातिसूचक गालियाँ दीं।
कथित तौर पर ध्रुव सेठी ने कहा कि अगर उसकी बात नहीं मानी गई तो वह उसकी पत्नी के साथ बदतमीजी और भ्रष्टाचार के मुकदमे में फँसा देगा। आरोप है कि याचिकर्ता ने लेखपाल को बंधक बना लिया था और बिहारीगढ़ एसएचओ के हस्तक्षेप के बाद लेखपाल को रिहा कराया जा सका। इसके बाद लेखपाल ने SC/ST ऐक्ट सहित विभिन्न धाराओं में पति-पत्नी के खिलाफ FIR दर्ज करा दी।
इसके बाद पूरे आपराधिक कार्यवाही के साथ-साथ विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी अधिनियम), सहारनपुर द्वारा पारित समन एवं आरोप पत्र को चुनौती देते हुए पति-पत्नी ने अदालत का रुख किया। इस पर तर्क दिया गया कि ध्रुव सेठी ने जमीन का एक टुकड़ा खरीदा था और म्युटेशन के बाद सीमांकन के लिए आवेदन किया था। सीमांकन के आदेश के बावजूद राजस्व अधिकारियों ने इसे पूरा नहीं किया।
अधिकारी सीमांकन नहीं कर रहे थे और इसके लिए आवेदकों को इधर-उधर दौड़ा रहे थे। जब उन पर दबाव डाला गया तो उन्होंने आश्वासन दिया कि सीमांकन पक्षों के सामने कराया जाएगा, लेकिन हैरानी की बात यह है कि उन्होंने आवेदकों की अनुपस्थिति में सीमांकन करना शुरू कर दिया। जब इसका विरोध किया गया तो हाथापाई शुरू हो गयी।
दंपति ने कोर्ट को बताया कि स्थानीय भू-माफिया, जिनका उस क्षेत्र में और राजस्व पर भी प्रभाव था, और स्थानीय पुलिस अधिकारी ने एक साजिश रची। वे उनकी जमीन हड़पना चाहते थे। इसी वजह से उनके खिलाफ FIR दर्ज कराई गई थी। इसके साथ ही दंपति ने कहा कि उन्हें नहीं पता था कि लेखपाल की जाति क्या है और ना ही जाति से संबंधित उन्होंने कोई बात कही।

इस पर न्यायालय ने कहा कि चौंकाने वाली बात है कि ST/SC ऐक्ट के प्रावधानों का कुछ लोगों द्वारा व्यक्तिगत प्रतिशोध, व्यक्तिगत हितों या खुद को बचाने के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है। न्यायालय ने कहा कि यह कानून की प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग है, क्योंकि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एक भी सबूत नहीं था कि उन्हें लेखपात की जाति के बारे में पता था।
कोर्ट ने कहा कि यह विश्वास करना कठिन है कि आवेदकों ने लेखपाल के खिलाफ जाति-संबंधी शब्दों का इस्तेमाल किया था। राजस्व अधिकारी को बाँधने की घटना को भी कोर्ट ने अविश्वसनीय बताया और कहा कि एक महिला एवं एक पुरुष इतने लोगों कैसे हावी हो सकते हैं और एक व्यक्ति को बाँध सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि FIR पढ़ने से कोई मामला नहीं बनता। इसलिए इसे रद्द किया जाता है।
SC/ST Act के दुरुपयोग को लेकर कई कोर्ट सख्त
यह कोई पहली बार नहीं है कि किसी कोर्ट ने ST/SC ऐक्ट के गलत इस्तेमाल पर इस तरह की कठोर टिप्पणी की है। इससे पहले इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। फरवरी 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐसे ही व्यक्ति को निर्दोष करार दिया था, जो पिछले 20 वर्षों से जेल में कैद था। व्यक्ति को बलात्कार के आरोप और SC/ST एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था।
हाईकोर्ट ने आरोपित की रिहाई की बात कहते हुए मामले पर तल्ख़ टिप्पणी भी की है। हाईकोर्ट के मुताबिक़ दुराचार का आरोप साबित नहीं हो पाया। मेडिकल रिपोर्ट में ज़बरदस्ती के कोई सबूत नहीं मिले हैं। मामले की रिपोर्ट भी घटना के तीन दिन बाद लिखाई गई थी। इस मामले में बलात्कार का झूठा आरोप ही नहीं, बल्कि SC/ST ऐक्ट का भी झूठा इस्तेमाल करते हुए दुरुपयोग किया गया था।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here