बहराइच
नौ महीने गुलजार रहने वाला कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग कल से हो रहा है बन्द। इस बार 16 हजार से भी ज्यादा देसी और विदेशी पर्यटकों ने कतर्नियाघाट में विचरण कर रहे वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक वास में निहारा। इसके अलावा गेरूआ नदी में अठखेलियां कर रही गंगा डॉल्फिन को देखा।
कतर्नियाघाट जैवविविधता की दृष्टि से काफी समृद्ध है, इसलिए यहां पर जलचर, थलचर और विभिन्न प्रकार के वन्यजीव पाए जाते हैं। कतर्नियाघाट के बीच में बहने वाली गेरूआ नदी में 70 डॉल्फिन के साथ-साथ बहुतायत में घड़ियाल और मगर भी पाए जाते हैं। इन्हें देखने के लिए पर्यटक नौकाविहार करते हैं। इसी तरह कछुओं के मामले में उत्तर प्रदेश में मौजूद 15 प्रजातियों में से सर्वाधिक 11 प्रजातियां अकेले कतर्नियाघाट इलाके के सरयू नदी में पाई गई हैं।
यहां पर उत्तर प्रदेश सरकार का राजकीय पशु बारासिंघा सहित हिरण की 5 प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां लगभग 7 हजार हिरण यहां के जंगल में विचरण करते आसानी से देखे जा सकते हैं। कतर्नियाघाट में पाए जाने वाले हाथियों की गणना नहीं हुई है क्योंकि यह अक्सर नेपाल के जंगलों तक विचरण करते रहते हैं। लेकिन एक अनुमान के अनुसार, 150 से 200 हाथी भी यहां गिने गए हैं।
हाल में हुई गिनती में पता चला है कि यहां 59 बाघ हैं। इसी तरह तेंदुए जंगल और ग्रामीण आबादी में रहने वाले तेंदुओं की संख्या 56 है। इतनी बड़ी संख्या में पाए जाने वाले वन्यजीवों को देखने के लिए पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं।
यहां पर लगभग दुर्लभ हो चुके गिद्ध भी आसानी से देखे जा सकते हैं। कतर्नियाघाट इलाके में हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में यह बात स्पष्ट हुई कि इस इलाके में गिद्धों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। इनकी गिनती के लिए वन विभाग ने 41 टीमें बनाई थीं जिसने जीपीएस के माध्यम से टैगिंग करके तस्वीरों को एकत्रित करने का काम किया। इस अध्ययन में सर्वे में पाया गया कि तीन साल में यहां गिद्धों की संख्या नौ से बढ़कर 159 हो गई है। इस इलाके में यूरेशियन ग्रिफन, रेड हेडेड (राज गिद्ध) सेनेरियस, इजिप्शियन प्रजाति के गिद्ध पूरे वर्ष पाए जाते हैं जबकि जाड़े में यहां हिमालयन ग्रिफन भी आ जाता है।
इस बार थारू संस्कृति को भी इको टूरिज़्म से जोड़ने के लिए एक अभिनव प्रयोग किया गया। थारू बाहुल्य गांव बर्दिया को इसके लिए चुना गया था। जिसमें एक डान्स ग्रुप तैयार किया गया था जो थारू लोक नृत्य के माघ्यम से पर्यटकों का मनोरंजन करता था। पर्यटक जहाँ यह नृत्य देखते थे वहीं पर उनके लिए देसी थारू भोजन की भी व्यवस्था रखी गई थी। भोजन के लिए 350 रू शुल्क रखा गया था और नृत्य देखने के लिए 500 रू निर्धारित किए गए थे साथ ही एक थारू कुटिया भी बनाई गई थी जिसमें 1000 रू शुल्क देकर पर्यटक रात भी थारू गांव में गुजारी जा सकती थी। प्रभागीय वनाधिकारी कतर्नियाघाट बी शिव कुमार ने बताया कि इस बार पर्यटकों से 16 लाख रुपये की आमदनी हुई है। उन्होंने बताया कि हमारे जंगल में मोतीपुर में 4, ककरहा में 4 व कतर्नियाघाट में 6 गेस्ट हाउस हैं जोकि पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं।