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हीटवेव्स बढ़ने से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर पैदा हो सकता है नुकसान, रेगिस्तान बनने का खतरा बढ़ेगा

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कानपुर
 मार्च से लेकर जून तक पड़ी जानलेवा गर्मी से भले ही अब कुछ निजात मिल गई हो, लेकिन आईआईटी कानपुर के प्रफेसर राजीव सिन्हा ने चेताया है कि ऐसी हीटवेव्स की बारंबरता बढ़ी तो ये भूजल के अलावा हमारे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र (इकॉलजी) पर खतरा पैदा हो जाएगा। अभी पक्के तौर पर तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन मौसम शायद बड़े बदलाव की तरफ इशारा कर रहा है। दुनिया के कई बड़े पर्यावरण वैज्ञानिक इसे एक संकेत मान रहे हैं।

इसलिए जले पेड़-पौधे
अर्थ साइंसेज विभाग के प्रफेसर राजीव सिन्हा ने कहा कि जब ज्यादा गर्मी पड़ती है, तो पौधे मिट्टी में मौजूद पानी को खींचते (इवैपोट्रांसपाइरेशन) हैं। ये पानी ही बाद में पत्तों पर बूंदों के तौर पर दिखता है। अपनी नमी बरकरार रखने के लिए ज्यादा गर्मी में पेड़-पौधे ज्यादा पानी खींचेंगे, लेकिन इसकी एक क्षमता है। इस दौरान मिट्टी भी सूख जाती है। जब पेड़-पौधों को नमी नहीं मिल पाती, तो वे जल जाते हैं। जैसा हमने पिछले 2-3 महीनों में देखा।

भूजल का पुराना स्तर नहीं लौटता
नदी, तालाब और पोखर जैसी जलनिधियां सिर्फ हमें पानी ही नहीं देतीं, बल्कि ये ग्राउंड वॉटर को रीचार्ज भी करती हैं। गर्म लहरों में जलनिधियों का पानी तेजी से वाष्पीकृत होता है। इस बीच लोग जमीन से खूब पानी लेते हैं। गर्मी और बारिश का मौसम सामान्य तरीके से चले तो बारिश में जमीन से निकाला गया पानी दोबारा रीचार्ज हो जाता है। ज्यादा हीटवेव्स आएंगी तो भूजल रीचार्ज का चक्र पूरी तरह बिगड़ जाएगा। भूजल कभी मॉनसून पूर्व की स्थिति में नहीं लौट पाएगा।

राजस्थान में बहती थीं नदियां
प्रफेसर सिन्हा ने चेतावनी दी कि जहां ज्यादा हीटवेव्स आएंगी, मौसम सूखा होगा, वहां एक कुछ सौ बरस में रेगिस्तान बनने का खतरा होता है। राजस्थान में कभी गंगा से बड़ी सरस्वती नदी बहती थी, जो आज विलुप्त हो गई। वहां का पर्यावरण पूरी तरह सूखा हो गया। ऐसी हीटवेव्स एक बड़ा संकेत हैं। पक्के तौर पर तो नहीं, लेकिन दुनिया के कई पर्यावरण वैज्ञानिक मानते हैं कि हम बड़े पर्यावरणीय बदलाव की ओर बढ़ रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि जब हम एक सिस्टम से दूसरे सिस्टम में जाते हैं, तो ऐसी अस्थिरताएं आती हैं। हमारा पूरा मौसमी तंत्र शायद खुद को बदलने की कोशिश कर रहा है। इससे हीटवेव्स और शुष्क दिन बढ़ते जा रहे हैं।

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