Home उत्तर प्रदेश पसमांदा मुस्लिमों ने BJP का साथ क्यों नहीं दिया? पूर्वांचल से पश्चिम...

पसमांदा मुस्लिमों ने BJP का साथ क्यों नहीं दिया? पूर्वांचल से पश्चिम तक 1% वोट भी नहीं मिले

10

लखनऊ
लोकसभा में उत्तर प्रदेश की 33 सीटों पर सिमटने ने एनडीए की जीत का स्वाद फीका कर दिया। पीएम नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ तो गए लेकिन अकेले दम पर बहुमत हासिल करने के भाजपा का सपना अधूरा रह गया। अब पार्टी की तरफ से समीक्षा और पड़ताल शुरू कर दी गई है। जो एक वर्ग भाजपा के साथ नहीं आया, उसमें पसमांदा मुसलमान प्रमुख हैं। बीते कुछ साल से भाजपा मिशन मोड पर इस समुदाय को आकर्षित करने के लिए काम कर रही थी लेकिन एक प्रतिशत तबके ने ही समर्थन किया। आखिर पसमांदा मुस्लिमों ने साथ क्यों नहीं दिया, यह बड़ा सवाल है।

पसमांदा का मतलब भी समझिए
पसमांदा एक फारसी शब्द है, जो पस और मांदा से मिलकर बना है। पस का अर्थ- पीछे होता है और मांदा का अर्थ- छूट जाना होता है। जिसके मायने हैं- काफ़िले या जत्थे का वह व्यक्ति जो यात्रा करते समय पीछे रह गया हो। ऐसे में मुस्लिमों में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े तबके को पसमांदा कहा जाता है। उत्तर प्रदेश में पसमांदा मुस्लिमों की तादाद 80 से 90 प्रतिशत तक मानी जाती है। बाकी के उच्च वर्ग के मुसलमान हैं।

कौन होते हैं पसमांदा मुस्लिम?
इसमें मोटे तौर पर ओबीसी और पिछड़ी वंचित जातियां शामिल होती हैं। धोबी, अंसारी, बुनकर, नाई, रंगरेज, धुनिया, फकीर, गुजर, राइन आदि-आदि। मुस्लिमों के अजलाफ और अरज़ाल वर्ग का समुदाय इसमें आता है। भाजपा की तरफ से इन पसमांदा लाभार्थियों तक पहुंच बनाने का प्रयास चल रहा है। भाजपा ने यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में इस रणनीति को अपनाने की कोशिश की। इसके बाद स्थानीय निकाय और अब लोकसभा में भी दांव चला गया।

BJP का फोकस पसमांदा
जुलाई 2022 में हैदराबाद में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पसमांदा मुसलमानों में भी पैठ बनाने की कोशिश पर जोर देने पर बात हुई। खुद पीएम मोदी ने कई बार मंच से मुस्लिमों के इस वर्ग को लेकर बयान दिया। उन्होंने इस बार 22 अप्रैल को अलीगढ़ में संबोधन करते हुए जोर देकर कहा कि सपा और कांग्रेस जैसे दलों ने मुस्लिमों के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक उन्नति के लिए कुछ नहीं किया।

पूर्वांचल का पसमांदा गढ़
प्रधानमंत्री आवास योजना और राशन कार्ड सहित तमाम योजनाओं का फायदा लाखों की तादाद में पसमांदा मुस्लिमों को मिला। बुनकर समुदाय के लिए भी विशेष लाभकारी योजनाएं लाई गईं। लेकिन बीजेपी को इसका फायदा नहीं मिला। पूर्वांचल में गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़ के इलाके पसमांदा मुस्लिमों के गढ़ माने जाते हैं। लेकिन यहां एकतरफा वोट सपा-कांग्रेस गठबंधन को पड़े। घोसी लोकसभा में सबसे अधिक पसमांदा मुस्लिम हैं लेकिन यहां सपा प्रत्याशी राजीव राय ने जीत हासिल की।

पश्चिम में हल्का-फुल्का समर्थन
पश्चिमी यूपी में पसमांदा मुसलमान कुछ संख्या में भाजपा की तरफ जरूर आए लेकिन कैराना, मेरठ, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर में यह संख्या नाकाफी रही। कई जगहों पर तो समुदाय के कुल वोट का एक फीसदी भी भाजपा को नहीं मिला। बूथ लेवल पर हुए विश्लेषण में पसमांदा मुस्लिम बहुल इलाकों में 10 फीसदी वोट हासिल हुए। इससे अधिक वोट तो उच्च वर्ग के मुस्लिमों, जैसे- मुस्लिम राजपूत, जाट, त्यागी, अशराफ, पठान और तुर्क समुदाय से हासिल हुए।

मंत्री और MLC भी बनाए गए
2022 के विधानसभा चुनाव में 8 प्रतिशत पसमांदा मुस्लिमों ने भाजपा का साथ दिया था। इसके बाद योगी सरकार में दानिश आजाद अंसारी को मंत्री बनाकर भगवा दल ने एक नया दांव चला। इसके साथ ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर तारिक मंसूर को विधान परिषद भेजा। दोनों ही पसमांदा समुदाय से आते हैं। भाजपा यूपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने कहा कि तमाम प्रयास और योजनाओं के बावजूद आखिर क्यों साथ नहीं मिला, इसके कारण तलाशे जा रहे हैं।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here