Home उत्तर प्रदेश मोदी-योगी की जोड़ी पूर्वांचल की लड़ाई में बीजेपी का ट्रंप कार्ड

मोदी-योगी की जोड़ी पूर्वांचल की लड़ाई में बीजेपी का ट्रंप कार्ड

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गोरखपुर

लोकसभा चुनाव निर्णायक अंतिम दौर में पहुंच गया है, जिसमें उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र की 13 सीटों पर जीत-हार होनी है। चुनाव का अंतिम मुकाबला वाराणसी के आसपास है, जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं, साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह क्षेत्र गोरखपुर भी है। दोनों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के गढ़ हैं, जिसका लक्ष्य लोकसभा में अपनी सीटें बढ़ाने का है। 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को क्षेत्र की 13 में से 11 सीटें मिली थीं। इनमें से नौ सीटों पर अकेले भाजपा ने जीत हासिल की, जबकि केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाली उसकी सहयोगी अपना दल (एस) को दो सीटें मिलीं।

इंडिया गठबंधन के घटक समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस पिछले चुनाव में अलग-अलग लड़े थे। इस इलाके में अपना खाता खोलने में विफल रहे थे। सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को दो सीटें मिलीं थीं। सातवें चरण में एक जून को 13 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है। इन सीटों में महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मीरजापुर और रॉबर्ट्सगंज शामिल हैं। 2019 में भाजपा को वाराणसी, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, सलेमपुर, बलिया और चंदौली में जीत मिली थी, जबकि अपना दल (एस) ने मीरजापुर और रॉबर्ट्सगंज में जीत हासिल की थी। बहुजन समाज पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जीती हुई घोसी और गाज़ीपुर सीटें भाजपा से छीन ली थीं। 2024 के लोकसभा चुनाव में जीत के लिए बीजेपी एक बार फिर मोदी और योगी फैक्टर पर भरोसा कर रही है।  

मोदी और योगी दोनों पार्टी समर्थकों को एकजुट करने के लिए पूर्वी यूपी में सार्वजनिक बैठकों, रोड शो और रैलियों के साथ जोरदार अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। कुर्मी, राजभर और निषाद सहित अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के महत्वपूर्ण मतदाताओं पर एनडीए सहयोगियों की पकड़ की परीक्षा भी इस चुनाव में हो रही है। एनडीए के सहयोगियों में अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाली अपना दल (एस), ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और संजय निषाद की निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) पार्टी शामिल हैं। अनुप्रिया मिर्ज़ापुर से तीसरी बार चुनाव लड़ रही हैं। घोसी लोकसभा सीट से ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर मैदान में हैं। भाजपा ने नोनिया समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान को फिर से अपने पाले में कर लिया है। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले राजभर और चौहान दोनों ने सपा से हाथ मिला लिया था और भाजपा को गाजीपुर और मऊ क्षेत्र में हार का सामना करना पड़ा था। अब दोनों नेताओं पर अपने समुदाय के वोट बीजेपी को ट्रांसफर कराने का जिम्‍मा है।

इस चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन की ताकत की भी परीक्षा हो रही है। देखने वाली बात यह होगी कि क्या वो पूर्वांचल में मोदी और योगी के गढ़ों में सेंध लगाने में सफल हो पाएगा। गठबंधन का भविष्य इस क्षेत्र के चुनाव नतीजों पर तय होगा जहां ओबीसी और मुस्लिम मतदाताओं पर इंडिया गठबंधन खेमे की पकड़ दिखती है। अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने संयुक्त रैलियों को संबोधित किया। दोनों दलों के नेताओं ने रोड शो का आयोजन भी किया है।  इंडिया गठबंधन ने 28 मई को वाराणसी में शक्ति प्रदर्शन की भी योजना बनाई है। सपा क्षेत्र में खोई जमीन वापस पाने के लिए पीडीए (पिछड़ा, दलित, मुस्लिम) फॉर्मूले पर भरोसा कर रही है। गैर-यादव ओबीसी का समर्थन हासिल करने के लिए उसने निषाद, सैंथवार, राजभर और बिंद समुदायों के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।

2022 के विधानसभा चुनाव में, सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने गाजीपुर लोकसभा क्षेत्र की सभी पांच सीटों पर कब्जा कर लिया। घोसी में सपा द्वारा बनाए गए जातीय गठबंधन के कारण भाजपा पांच विधानसभा सीटों में से केवल एक ही जीत सकी। इस बार लोकसभा चुनाव में 13 सीटों में से नौ पर सपा और चार पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। यूपी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय राय वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के खिलाफ मैदान में हैं। सपा ने मुस्लिम मतदाताओं पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी को गाजीपुर से मैदान में उतारा है। जबकि बसपा ने अकेले चुनाव लड़ते हुए सभी 13 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।  2019 में अपनी जीती हुई दो सीटें बरकरार रखने के साथ-साथ बसपा मुस्लिम और ओबीसी मतदाताओं का समर्थन वापस पाने के लिए काम कर रही है। छह ओबीसी उम्मीदवारों के साथ, बसपा ने पिछड़े पसमांदा समुदाय से तीन मुसलमानों को मैदान में उतारा है। सातवें चरण के 13 निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश के विविध क्षेत्र में फैले हुए हैं।

 

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