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जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी, सभी पार्टियों से खुद बात करेंगे रिजिजू

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं. सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट भी आ गई है. अब सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संसद के आगामी सत्र में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर ली है. कानून मंत्री किरेन रिजिजू इस मसले पर सभी दलों से बात करेंगे. वहीं, बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन (BLA) ने 2 जून को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ अभियोजन की अनुमति मांगी है. जब वर्मा दिल्ली हाई कोर्ट में कार्यरत थे, तब उनके लुटियन्स स्थित सरकारी आवास से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद हुई थी. इस बरामदगी से जुड़ी तस्वीरें और वीडियो दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा ने जांच समिति के साथ साझा किए थे. जांच के दौरान वर्मा के आवास में 14 मार्च को रात करीब 11:35 बजे आग लगने की घटना भी सामने आई, जिसके बाद दिल्ली फायर सर्विस और पुलिस की टीम वहां पहुंची थी. वहीं से जली हुई नकदी और अन्य सबूत बरामद हुए.

SC की इन-हाउस जांच रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय समिति ने 3 मई को अपनी रिपोर्ट फाइनल की. समिति में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के सीजे GS संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थीं. रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा पर लगे नकदी बरामदगी के आरोपों को सही पाया गया.

इसके बाद 6 मई को जस्टिस वर्मा से उनका जवाब मांगा गया. लेकिन उनकी सफाई से संतुष्ट न होने पर पूर्व CJI जस्टिस संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री को यह रिपोर्ट भेज दी. साथ ही उनसे सिफारिश की गई कि वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जाए.

कानून और संवैधानिक प्रक्रिया क्या कहती है?
1991 के के वीरास्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया था कि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी मौजूदा जज के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज करने से पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश की अनुमति लेना अनिवार्य है. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि ऐसे मामलों में राष्ट्रपति अभियोजन की स्वीकृति देने के लिए सक्षम प्राधिकारी होते हैं, लेकिन यह निर्णय CJI की सलाह पर आधारित होना चाहिए.

बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने इसी फैसले का हवाला देते हुए FIR दर्ज करने और अभियोजन की प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति मांगी है.
अब तक क्या कार्रवाई हुई?

सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई को इस मामले पर दायर जनहित याचिका को ‘असमयिक’ बताते हुए खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को उचित प्राधिकरण से संपर्क करने को कहा.
दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय ने इस पर प्रारंभिक जांच की और जस्टिस वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया.
24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें उनके मूल कोर्ट यानी इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजने की सिफारिश की.
28 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए.
आगे क्या होगा?
अब केंद्र सरकार संसद में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने जा रही है. प्रस्ताव पास करने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी.