नई दिल्ली
भारत की कई मसाला कंपनियों पर दुनिया के कई देशों में सवाल उठ रहे हैं। लेकिन एक मसाला ऐसा है जिसकी डिमांड में काफी तेजी आने की संभावना है और इसकी वजह भारत से करीब 16,000 किमी दूर है। मध्य अमेरिकी देश ग्वाटेमाला दुनिया में इलायची के प्रमुख उत्पादक देशों में से एक है। हालांकि इस बार वहां सूखे की स्थिति है। इससे खासकर खाड़ी के देशों में भारतीय इलायची की डिमांड में तेजी आने की संभावना है। भारतीय इलायची को ग्वाटेमाला की तुलना में बेहतर क्वालिटी का माना जाता है। भारत में इलायची की फसल की तुड़ाई का सीजन जुलाई के अंत में या अगस्त में शुरू होगा। देश में इलायची का सबसे ज्यादा उत्पादन केरल में होता है।
हिंदू बिजनसलाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्वाटेमाला में उच्च तापमान और सूखे के कारण इस सीजन में इलायची का उत्पादन घटकर 25,000 टन रहने का अनुमान है। साथ ही फसल के बाजार में आने में भी देरी हो सकती है। भारत में भी इलायची का उत्पादन 50 फीसदी गिरकर 16,000 टन रहने का अनुमान है। हालांकि अगस्त से इलायची का निर्यात बढ़ने की उम्मीद है। केरल का इडुक्की जिला इलायची की खेती के लिए मशहूर है। आजकल वहां हल्की फुल्की बारिश हो रही है जिससे उत्पादन बढ़ने की उम्मीद है। अभी इलायची की कीमत 2,245 रुपये प्रति किलो के भाव पर है।
क्या कहते हैं उत्पादक?
इडुक्की के मुख्य इलायची उत्पादन केंद्र वंदनमेडु में उत्पादकों ने कहा कि मार्च के दौरान क्षेत्र में सामान्य रूप से तापमान 30 डिग्री के आसपास रहता था, लेकिन इस सीजन में यह 34 डिग्री तक पहुंच गया है। आने वाले दिनों में तापमान में ऐसे ही इजाफा होगा। इसके चलते फसल को नुकसान हो सकता है। इलायची के पौधों का जीवित रहना और अगली फसल में इसकी पैदावार काफी हद तक एक पखवाड़े में होने वाली बारिश पर निर्भर करेगी। उन्होंने कहा कि इलायची के बागानों को पौधों के अस्तित्व के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है और बारिश के अभाव में पानी की कमी भी चिंता का विषय बन रही है। व्यापारियों के अनुसार, होली के मौसम में अच्छी ग्रामीण मांग को देखते हुए, बाजार 1,500 रुपये की औसत कीमत वसूली के साथ कमोबेश स्थिर है।
आने वाले दिनों में बढ़ सकती है मांग
इलाचयी के उत्पादक कहते हैं कि दिसंबर से अब तक प्रचुर मात्रा में आवक के कारण इलायची की कीमतों में गिरावट आई है। ग्वाटेमाला में पिछले सीजन के 54,000 टन से इस साल फसल में भारी गिरावट देखी गई है। यह लगभग 30,000 टन रह गई है। 1982-83 के बाद पहली बार भारतीय इलायची उत्पादन में इतनी बड़ी गिरावट होने की संभावना है। मौजूदा कीमतें लगभग ग्वाटेमाला इलायची की कीमतों के बराबर हैं और आने वाले हफ्तों में निर्यात मांग बढ़ सकती है। हालांकि, लाल सागर संकट के कारण शिपिंग में देरी फिलहाल बाधाओं का कारण बन रही है। ऐसे में अगर निर्यात बढ़ता है तो इस महीने के अंत और अप्रैल में कीमतें ठीक हो सकती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, अल नीनो का असर अभी भी कायम है। ऐसे में अगर इलायची उत्पादक क्षेत्रों में मार्च में बारिश नहीं हुई तो कीमतें बढ़ सकती हैं। अगर बारिश में 10 से 20 अप्रैल तक देरी होती है, तो इससे अगले सीजन में उत्पादन में गिरावट आएगी और कीमतें बढ़ सकती हैं।
गर्मी और कम बारिश के कारण इस बार आने वाले सीजन में इलायची का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। मौसम की इस परिस्थिति के कारण इलायची उत्पादक किसानों की चिंताएं बढ़ गई है। किसान लगातार बढ़ रही गर्मी से परेशान हैं, क्योंकि उनका मानना है कि इससे आगामी सीज़न में उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
फसल प्रभावित
लेकिन ट्रेडर्स का कहना है कि पिछले चार महीने से इडुक्की में सूखे के कारण कीमत में और तेजी आ सकती है। इलायची की खेती में ज्यादातर छोटी और सीमांत जोत वाले किसान हैं। जानकारों का कहना है कि सूखे के कारण करीब 30 फीसदी फसल बर्बाद हो चुकी है। ऐसे में करीब 50 फीसदी उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। अगर पिछले साल के मुकाबले डिमांड में कोई बदलाव नहीं होता है तो कीमत में काफी तेजी आ सकती है।